Friday 28 September 2012

तुम्हारा अक्श


तुम नहीं हो

मगर

तुम्हारा अक्श

नज़र आता है मुझे

हर उस शय में

जिसका ताल्लुक तुमसे था

जैसे तुम उतर आई हो

हर उस शय में

अपनी चीर परिचित मुस्कराहट लिए

अपनी सधी अदाओं से

मेरे दिल को रिझाती

और यह बताती

कि हाँ

मैं हूँ यहाँ

कभी लगता है

शायद ये मेरा भ्रम है

पर नहीं

देखो

मेरी आँखें नम हैं

जैसे भींग जाती थी

मेरी आँखें

तुमसे मिलकर

जब भी हम मिले

जुदा होकर

हर वो शय

जिसका ताल्लुक तुमसे था

आज भी नम कर जाती हैं 

मेरी आँखें 

जब भी देखता हूँ मैं 

तुम्हारा अक्श  

हर उस शय में

जिसका ताल्लुक तुमसे था 



1 comment:

  1. पंछी का समंदर में प्रतिबिम्ब ......और समंदर का पंछी के लिए अनंत प्रेम .......
    वाह !! बहुत सुंदर रचना ....एक सुंदर तस्वीर के साथ ........:))

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