Friday 14 September 2012

मेरी सज़ा

हर बार क्यों

गलत होता हूँ मैं

क्या उनका होना

मेरी खता है

अपनी चाहत से बढ़ कर

चाहा है उनको

उनकी हर ख़ुशी

मेरी रज़ा है 

वो चाहें ना चाहें

मर्ज़ी उनकी मगर

मेरे प्यार को ना कहें

ये प्यार नहीं

मेरी अदा है

मेरा ईमान मेरा खुदा

जानता है

ये प्यार कोई खेल नहीं

मेरी वफ़ा है

उनसे यूँ दूर रहना

खलता है अक्सर

पर क्या करूँ

अब यही

मेरी सज़ा है


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