Wednesday 12 September 2012

कुछ ख्याल.....दिल से (भाग - ५)

कुछ ज़ख्म अपने सायों का भी हम ढोते हैं
चोट लगती नहीं हमें फिर भी हम रोते हैं
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मुझे पाकर तुम्हें कुछ अहसास हो ना हो
मुझे खोने का गम तुम्हें बहुत तड्पाएगा
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मोहब्बत का अक्सर यही अंजाम होता है
ग़मों को ढोते हैं हम और हाथों में जाम होता है
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मेरी हर दुआओं में अब तुम्हारा नाम होगा
मेरा हर फ़िक्र हर दुलार अब तुम्हारे नाम होगा
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कैसी बिछी ये बिसात जुआ बन गयी ज़िन्दगी
चाहत प्यादे बन गए ना शाह दे पाए ना मात
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तुमने ज़माने के रवायतों को दस्तूर माना है
पर ज़माने से हम नहीं हम से ये ज़माना है
हम अपनी चाहतों की वो मिसाल बना देंगे
कि लोग हमें मोहब्बत का खुदा बना देंगे
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मेरी बंदगी का अंदाज़ सब से जुदा होता है
मेरे महबूब मेरे सजदों में तू मेरा खुदा होता है
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बदौलत तेरी रहमत ए मेरे मौला
पाई है वो दौलत मैंने ए मेरे मौला
कहतें हैं दोस्त जिसे इस जहां में
बने हैं वो मेरी ताकत ए मेरे मौला
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तोड़ कर आसमां से तारे बिखेर दूं तेरे क़दमों पे
बस एक तू जो अपनी मुस्कराहट मेरे हवाले कर दे
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मेरी ख्वाहिश में तुम हो ...तुम्हारी मुस्कुराहटें हैं
मेरी ज़िन्दगी की मौसिकी तेरे क़दमों की आहटें हैं
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तेरे इश्क में फ़ना हुए भी अगर
वो मौत भी खुद पे इतराएगी
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हौसला मुझको तू बस इतना सा दे दे
मोहब्बत को मेरी अपनी रज़ा तू दे दे  

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