जाने मन क्यूँ छटपटाता है
बेचैनियों के अँधेरे में
जैसे कुछ छुटता सा जाता है
आते हुए सवेरे में
इक अनजाना सा डर
मन में बैठा हुआ है
क्या है वो जो
मुझसे रूठा हुआ है
कोई उम्मीद किसी की
या भरोसा किसी का
कहीं मोहब्बत किसी की
या चाहत किसी का
कैसी है ये उलझन
क्यूँ है दुविधा में मन
साँसे भी बेचैन हैं
भरे भरे से नैन हैं
मन है कि
अँधेरे में डूबता ही जाता है
मंजिल तो दूर
रास्ता भी नज़र नहीं आता है
क्या करूँ
कहाँ जाऊं मैं
इस मन को कैसे समझाऊं मैं
अब ऐसे ही ज़िन्दगी
चलती चली जाती है
दुविधाओं में डूबती उतराती है
शायद मैं भी
अब इसके साथ
जीना सिख गया हूँ
जिंदगी से
लड़ना सिख गया हूँ
बेचैनियों के अँधेरे में
जैसे कुछ छुटता सा जाता है
आते हुए सवेरे में
इक अनजाना सा डर
मन में बैठा हुआ है
क्या है वो जो
मुझसे रूठा हुआ है
कोई उम्मीद किसी की
या भरोसा किसी का
कहीं मोहब्बत किसी की
या चाहत किसी का
कैसी है ये उलझन
क्यूँ है दुविधा में मन
साँसे भी बेचैन हैं
भरे भरे से नैन हैं
मन है कि
अँधेरे में डूबता ही जाता है
मंजिल तो दूर
रास्ता भी नज़र नहीं आता है
क्या करूँ
कहाँ जाऊं मैं
इस मन को कैसे समझाऊं मैं
अब ऐसे ही ज़िन्दगी
चलती चली जाती है
दुविधाओं में डूबती उतराती है
शायद मैं भी
अब इसके साथ
जीना सिख गया हूँ
जिंदगी से
लड़ना सिख गया हूँ
chatpatahat mukti ka pahla kadam hai
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