तुम नहीं हो
मगर
तुम्हारा अक्श
नज़र आता है मुझे
हर उस शय में
जिसका ताल्लुक तुमसे था
जैसे तुम उतर आई हो
हर उस शय में
अपनी चीर परिचित मुस्कराहट लिए
अपनी सधी अदाओं से
मेरे दिल को रिझाती
और यह बताती
कि हाँ
मैं हूँ यहाँ
कभी लगता है
शायद ये मेरा भ्रम है
पर नहीं
देखो
मेरी आँखें नम हैं
जैसे भींग जाती थी
मेरी आँखें
तुमसे मिलकर
जब भी हम मिले
जुदा होकर
हर वो शय
जिसका ताल्लुक तुमसे था
आज भी नम कर जाती हैं
मेरी आँखें
जब भी देखता हूँ मैं
तुम्हारा अक्श
हर उस शय में
जिसका ताल्लुक तुमसे था
जिसका ताल्लुक तुमसे था
पंछी का समंदर में प्रतिबिम्ब ......और समंदर का पंछी के लिए अनंत प्रेम .......
ReplyDeleteवाह !! बहुत सुंदर रचना ....एक सुंदर तस्वीर के साथ ........:))