Thursday 27 September 2012

आज अगर

आज अगर मेरी ज़िन्दगी का आखिरी दिन होता

मैं अपनी सारी चिंताओं को छोड़

इस ज़िन्दगी के लिए

उस परमात्मा का शुक्रगुजार होता

मैं खुश होता

शायद मुस्कुराता


आज अगर मेरी ज़िन्दगी का आखिरी दिन होता 

मैं फूलों में समय ना गंवाता

अपनी ज़िन्दगी के बीते हुए लम्हों को निहारता

और मुस्कुराता

कि अच्छा वक़्त गुज़रा

सबको उनका यथोचित लौटाता


आज अगर मेरी ज़िन्दगी का आखिरी दिन होता 

सबको देता

अपना प्यार अपना दुलार अपनी फ़िक्र

सबको बताता

ज़िन्दगी को जिंदादिली से जियो

अहम् और अहंकार को छोड़ो


आज अगर मेरी ज़िन्दगी का आखिरी दिन होता 

जो भी मिलता

उसे ख़ुशी ख़ुशी स्वीकारता

उस मृत्यु को भी

क्योंकि

मृत्यु तो जीवन है

एक नवजीवन



2 comments:

  1. अच्छी भावना पिरोई है आपने शब्दों में !

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  2. आज अगर मेरी ज़िन्दगी का आखिरी दिन होता

    सबको देता

    अपना प्यार अपना दुलार अपनी फ़िक्र.....बहुत खूब

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