जिंदगी की दुशवारियाँ
चैन से दो पल जीने नहीं देतीं
कुछ पल ठहर कर
अपने सीने के ज़ख्मों को
सीना चाहूँ
ज़ालिम ज़िन्दगी
उन ज़ख्मों को सीने नहीं देती
कभी जो अपने अश्कों को
पीना चाहूँ
ये बेवफा ज़िन्दगी
उन अश्कों को पीने नहीं देती
सारे ज़ख्म यूँ ही खुले लिए
फिरता रहता हूँ
अपने अश्कों की मझधार में
अक्सर बिना पतवार के
घिरता रहता हूँ
सारे ज़ख्म यूँ ही
रिसते रहते हैं
अश्कों की धार सूख सुख कर
बहते रहते हैं
और
मेरी नाकामियों के किस्से
कहते रहते हैं
अब इन दुशवारियों के साथ ही
ज़िन्दगी जीता हूँ
समझौता समझो
या मजबूरी
अश्कों को
पानी समझ कर पीता हूँ
चैन से दो पल जीने नहीं देतीं
कुछ पल ठहर कर
अपने सीने के ज़ख्मों को
सीना चाहूँ
ज़ालिम ज़िन्दगी
उन ज़ख्मों को सीने नहीं देती
कभी जो अपने अश्कों को
पीना चाहूँ
ये बेवफा ज़िन्दगी
उन अश्कों को पीने नहीं देती
सारे ज़ख्म यूँ ही खुले लिए
फिरता रहता हूँ
अपने अश्कों की मझधार में
अक्सर बिना पतवार के
घिरता रहता हूँ
सारे ज़ख्म यूँ ही
रिसते रहते हैं
अश्कों की धार सूख सुख कर
बहते रहते हैं
और
मेरी नाकामियों के किस्से
कहते रहते हैं
अब इन दुशवारियों के साथ ही
ज़िन्दगी जीता हूँ
समझौता समझो
या मजबूरी
अश्कों को
पानी समझ कर पीता हूँ
No comments:
Post a Comment