Sunday 16 September 2012

सत्यमेव जयते

इक शोर है

इक कोलाहल

मन के अंदर

शायद मन के अंतर्द्वंद का शोर

और उस से उपजा

ये कोलाहल

मन का अंतर्द्वंद

सत्य और असत्य के बीच

किस राह चलूँ

इस दुविधा में हूँ

इंसान हूँ भगवान नहीं

मन है

चाहतें हैं

अपेक्षाएं हैं

उम्मीदों का पूरा संसार है

उन्हें कैसे समझाऊं

कैसे बतलाऊं

हर राह में इक दोराहा है

किस राह चलूँ

इसी दुविधा में हूँ

एक मन चंचल है

चंचलता उसकी धाती

ज्यादा खुशियाँ

सम्हाल नहीं पाती

दूसरा मन धीर है

गंभीर है

तकलीफों से नहीं घबराती

लाख तूफां आ जाये

इसको नहीं हिला पाती

असत्य की संगिनी है

चंचल मन

सत्य का साथी

धीर मन

असत्य वाचाल है

सत्य मौन

असत्य में लालच है

सत्य परम संतोषी

असत्य में आडम्बर है

सत्य में सुंदरता

असत्य क्षण भंगुर है

सत्य चीर सनातन

चंचल मन की चंचलता

चाहे असत्य की चपलता

धीर गंभीर मन

ढूंढें सत्य की स्थिरता

दोनों मन मेरे

फंसे हैं इस अंतर्द्वंद में

शायद ईश्वर ने भी चाहा होगा

इस मन को परखना

तभी इस अंतर्द्वंद में

डाला इनको

पर मैं कैसे समझाऊं

अपने मन को

ये तो दोनों ही मेरे अपने हैं

शायद समय इन्हें समझाएगा

सत्य असत्य का भेद बतायेगा

अंततः

जीत तो सत्य की ही होनी है

सत्यमेव जयते














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