Thursday 13 September 2012

कुछ ख्याल.....दिल से (भाग -७)


चाहत का ये अंदाज़ भी कितना निराला है
चाहत ने उनकी टूटने से हमको सम्हाला है
------------
मौन ही प्यार है मौन दुलार है मौन इकरार है 
मौन अहसास की भाषा और मौन ही मनुहार है 
------------
ये जिंदगी तो यूँ ही करवट बदलती रहती है
कभी हंसी तो कभी आंसुओं में ढलती रहती है 
-------------
असर तुम्हें दिखे ना दिखे तुम्हारी दुआओं का
दुआओं से पहले आकर उसने तुम्हें थाम लिया है 
--------------
जिन ख़्वाबों की ताबीर नहीं 
उन्हें आँखों में मत सजाओ तुम 
वो नासूर बन कर चुभेंगे 
जब ख्यालों में उनको लाओगे तुम 
--------------
खफा 'गर हम होते उनकी फितरतों से
ख्यालों में ना होते वो हमारे हसरतों के
-------------
शब्दों की धार से डरती है तलवार भी ....
शब्द मांझी भी है शब्द पतवार भी
-------------
दरख्तों को भी फिकर होती है अपनी हर शाखों की
गर शाख कोई ज़ख़्मी हो तो दरख़्त अपने आंसू रोता है 
-------------
मोहब्बत तो एक अहसास है
ना कोई वादे ना कोई दावे
बस चाहत की इक प्यास है
-------------
तन्हाई में तनहा नहीं भीड़ में अकेला हूँ
ये क्या हुआ मेरा वजूद मुझ सा नहीं
-------------
गुज़रे हुए कल को इतिहास बना दो
आने वाले कल का एहसास जगा लो
------------- 
वो जो आँखें बिछाए बैठा है तुम्हारे इंतज़ार में
उसने अपना सब कुछ लुटाया तुम्हारे प्यार में 
-------------
खुद पे यकीं था पर दिल और कहीं था
जब दिल से बात हुई तू बस वहीँ था
------------
सोने को कह कर ख़्वाबों में चल दिए
हम तनहा चाँद तकते रहे 












No comments:

Post a Comment