मन करता है
कभी बादल बन उडूं
खुले आसमान में
बरसूँ जी भर
उनके आँगन में
या फिर
भँवरा बन मंडराऊं
उनके बागों में
सुरभि चुराऊँ
फूलों से उनकी
या फिर
हवा बन
उनके जुल्फों को
लहराऊँ
खुशबू चुराऊँ
बदन से उनकी
कोई तो जतन करूँ
जो
अपने साजन से
मिल आऊँ
कभी बादल बन उडूं
खुले आसमान में
बरसूँ जी भर
उनके आँगन में
या फिर
भँवरा बन मंडराऊं
उनके बागों में
सुरभि चुराऊँ
फूलों से उनकी
या फिर
हवा बन
उनके जुल्फों को
लहराऊँ
खुशबू चुराऊँ
बदन से उनकी
कोई तो जतन करूँ
जो
अपने साजन से
मिल आऊँ
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