Friday 28 September 2012

प्रतिध्वनि


प्रतिध्वनि

तुम्हारे स्वर की

गूंजती है

नीले आसमान में

घर में बियाबान में

पूरे ब्रह्मांड में

जहां गूंजते थे

तुम्हारे स्वर

जब

तुम करती थी आलाप

पंचम और सप्तम तान में

चाह यह मेरे हृदय की

कभी रुके ना ये ध्वनि

गूंजती रहे निरंतर

इस स्वर की प्रतिध्वनि

तो आओ

छेड़ दो फिर वही तान

गूँज उठे धरती आसमान

झूमे सारा ब्रह्मांड

और फिर

गूंजती रहे निरंतर

इसकी प्रतिध्वनियाँ

नीले आसमान में

घर में बियाबान में

पूरे ब्रह्मांड में

गाओ आज फिर तुम

पंचम और सप्तम तान में




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