प्रतिध्वनि
तुम्हारे स्वर की
गूंजती है
नीले आसमान में
घर में बियाबान में
पूरे ब्रह्मांड में
जहां गूंजते थे
तुम्हारे स्वर
जब
तुम करती थी आलाप
पंचम और सप्तम तान में
चाह यह मेरे हृदय की
कभी रुके ना ये ध्वनि
गूंजती रहे निरंतर
इस स्वर की प्रतिध्वनि
तो आओ
छेड़ दो फिर वही तान
गूँज उठे धरती आसमान
झूमे सारा ब्रह्मांड
और फिर
गूंजती रहे निरंतर
इसकी प्रतिध्वनियाँ
नीले आसमान में
घर में बियाबान में
पूरे ब्रह्मांड में
गाओ आज फिर तुम
पंचम और सप्तम तान में
khoobsurat
ReplyDelete