Tuesday 4 September 2012

कुछ ख्याल.....दिल से (भाग - ३)

मुझे पाकर तुम्हे कुछ एहसास हो ना हो

मुझे खोने का गम तुम्हे बहुत तड्पाएगा

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मेरी हर दुआओं में तुम्हारा नाम होगा

मेरा हर फ़िक्र हर दुलार अब तेरे नाम होगा

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तुम्हारी मोहब्बत की हर निशानी रखी है मैंने

इस दिल के टूटने की हर कहानी लिखी है मैंने

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चाहत का ये अंदाज़ भी कितना निराला है

चाहत ने  उनकी हमे टूटने से सम्हाला है

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ये ज़िन्दगी यूँ ही करवट बदलती रहती है

कभी ख़ुशी तो कभी गम की आंच सहती है

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कुछ ज़ख्म अपने सायों का भी हम ढोते हैं

चोट लगती नहीं हमें पर फिर भी हम रोते हैं

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राह-ए-वफ़ा किसी की मोहताज़ नहीं होती

खुदा की नेमत है ये यहाँ फरियाद नहीं होती

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कैसी बिछी ये बिसात

जुआ बन गयी जिंदगी

चाहत प्यादे बन गए

ना शह दे पाए न मात

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ये दीप नहीं वो ज्वाला है
अँधेरा जिसका निवाला है 
ये एक अकेला काफी है 
'गर तम ज़रा भी बाकी है

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खफा 'गर हम होते उनकी फितरतों से 

यूँ ख्यालों में ना होते वो हमारे हसरतों के

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