Friday 28 September 2012

चट्टान मेरे अहम् का


कभी जो मैं चट्टान बनूँ

तुम नदी बन कर आना

मुझसे टकराना

फिर मेरे टुकड़ों को

अपने साथ बहा ले जाना

शायद तभी टूट पाए

मेरे अहम् का ये चट्टान

मुझसे

अब ये नहीं सम्हलता

चाहूं तो भी नहीं पिघलता

तुम जब

नदी बन कर आओगी

इसके टुकड़े टुकड़े हो जायेंगे

फिर तुम्हारी तेज़ धार में

ये सारे टुकड़े बह जायेंगे

कण कण बन बिखर जायेंगे

तुम नदी बन

यूँ ही बहती रहना

उन चूर हुए टुकड़ों के

कण कण को

इतनी दूर बिखेर देना

कि फिर कभी वो

चट्टान ना बन पाए

मेरे अहम् का









2 comments:

  1. अच्छा लिखा - "फिर कभी वो

    चट्टान ना बन पाए

    मेरे अहम् का.." अच्छे भाव, शुभकामनाएँ

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  2. मुझे भी तो अहम् था अपनी तेज़ रफ्त का
    अच्छा ही हुआ जो तुमसे टकरा गयी
    मेरे तुम्हारे दोनों के अहम् का हनन हुआ
    और तुम्हारे कण कण से मेरा मिलन हुआ.....:)

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