Sunday 16 September 2012

कुछ ख्याल.....दिल से (भाग -९)

ये  दिल की  लगी भी  कैसी  लगी
ना हम कह पाये ना वो जान पाये


उन्हें  तो फुरसत  नहीं तस्सवुर में  भी मेरे आने की
कहीं ये तरीका तो नहीं मोहब्बत मेरी आजमाने की


जाने क्यूँ बढ़ रहा  था मेरे सीने में लहू सारी रात
देखा तो सीने पे मेंहदी वाली हथेली थी सारी रात


जिंदगी  जब कभी  बेहाल  करती है
तेरी मोहब्बत बड़ा कमाल करती है


हौसला मुझको तू बस इतना सा दे दे
मोहब्बत को मेरी अपनी रज़ा तू दे दे


तेरे इश्क में फ़ना हुए भी अगर
वो मौत  भी खुद पर इतराएगी


मेरी ख्वाहिशों में तुम हो ...तुम्हारी मुस्कुराहटें हैं
मेरी जिंदगी की मौसिकी तेरे क़दमों की आहटें हैं


तोड़कर  आसमां  से तारे  बिखेर  दूं  तेरे  क़दमों पे
बस एक तू जो अपनी मुस्कराहट मेरे हवाले कर दे


मेरी बंदगी  का  अंदाज़  सब  से जुदा  होता है
मेरे महबूब मेरे सजदों में तू मेरा खुदा होता है


तुमने ज़माने की रवायतों को दस्तूर माना है
पर ज़माने से हम नहीं हमसे ये ज़माना है
हम अपनी चाहतों की वो मिसाल बना देंगे
कि लोग हमें मोहब्बत का खुदा बना देंगे


मशरूफियत ने उनकी हमें कितना सताया है
दीदार की हसरत लिए भटकते हैं दर-ब-दर


उनसे थोड़ी सी वफ़ा की हसरत की थी
वो रकीबों से हमारे दिल लगा बैठे 

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