Sunday 30 September 2012

कुछ ख्याल.... दिल से (भाग- १३)


इक नया आस्मां बनाया है मैंने नए सूरज के संग
बनाना है इक आशियाँ अब उन सितारों के संग
जहाँ ख़्वाबों के मेले लगेंगे हमारे अरमानों के संग
फिर खुशियाँ होंगी ढेर सारी और सपने होंगे सतरंग   


ना जाने क्यूँ ये अश्क आँखों में नहीं थमते
नहीं बताना चाहते उन्हें कि हम ग़मज़दा हैं


अंधेरो के इन उजालों में तुम रौशनी ढूंढ लो 
दिन के उजाले अंधेरों में बदल जाते हैं अक्सर 


कहाँ भूल पाया हूँ आज तक उन बीते हुए लम्हों को 
तन्हाई में जो अक्सर आते हैं साथ हमारा निभाने के लिए


वक्त वक्त की बात है
कभी बहार तो कभी ग़मों की रात है
आते जाते हर लम्हों की क्या बात है
तुम्हारा हमसफ़र हर पल तुम्हारे साथ है


शाम आई तो ये ख्याल आया वो फुर्सत में होंगे अभी
चलो छेड़तें हैं फिर कोई भुला हुआ अफ़साना ही सही


पता नहीं कैसे ये बातों का सिलसिला शुरू हुआ 
मेरे दोस्त तुझमे मुझे सब कुछ अपना सा लगा 


उन्हें फुरसत में पाकर हमने छेड़ा था इक अफ़साना
हमें मालूम ना था इस बात का भी बनेगा फ़साना


बिखरी जुल्फें तुम्हारी ..भटकती नज़र हमारी 
क्यूँ ईमान का मेरे तुम ..यूँ लेते हो इम्तेहान


आदत सी बन गई है ना जाने कैसे उनके दीदार की
जब से मिले हैं वो यहाँ सब कुछ पहले जैसा नहीं


चाँद तारे तेरी राह तकते हैं
पलकों से तेरी ये बात कहते हैं
जल्दी से उनको ख़्वाबों की दुनिया में लेकर लाना
उनकी मुस्कराहट से हमें भी है मुस्कुराना


हुस्न और इश्क दोनों ज़माने में ऐसे हुए
कि इश्क हुआ तो हुस्न निखर कर आया
पर इश्क ने दिल को ही अपना साथी बनाया 


उन्हें क्या बताएं कि इस दिल में क्या है
कभी जो चीर के इस दिल को देखा होता
उन्हें वहाँ सिर्फ अपना अक्श नज़र आता


आ जाओ पूरे कर लो अपने सारे अरमानों को तुम
दिल में रहते हो और ढूँढते हो मुझे ज़मानों में तुम


दोस्ती का जज़्बा हर एक में नहीं होता
ये एक ऐसी चाहत है जो हर किसी में नहीं होता

क्या इक इतवार काफी होगा
दिल का दराज खंगालने के लिए
वहाँ तो उम्र भर के फ़साने होंगे
अपनी अपनी जगह पाने के लिए






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