Wednesday 19 September 2012

ये तनहाईयाँ

ये रातें

ये तनहाईयाँ

अक्सर मुझको तड़पाते हैं

वो नहीं

उनकी यादें नहीं

अब तो वो तस्सवुर में भी

मेरे नहीं आते हैं

हम तो ख़्वाबों में ही

उनसे मिलकर

मुस्कुरा लिया करते थे

अब वही ख्वाब

आ आकर हमें तड़पाते हैं

उनके यूँ रूठ जाने का

कोई सबब तो नहीं

पर जाने क्यूँ वो हमसे

यूँ ही रूठे जाते हैं

शायद मेरे प्यार में ही

कुछ कमी रही जज्बातों की

तभी मुझको इस हाल में

वो तनहा छोड़े जाते हैं

अब तो रात और दिन

बस यही तनहाई है

वो नहीं हैं पास मेरे

दिल इस बात को

अब तक

ज़ज्ब नहीं कर पाई है


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