Tuesday 4 July 2017

मौन


मौन -

तुम में कितने स्वर

कितनी आहटें हैं निहित

कितने वाचाल हो तुम

बिना स्वर के ही

कह देते सब कुछ

एक ही दृष्टिपात में

या चेहरे के बदलते रंगों में

होंठो की हल्की सी थिरकन में

कभी भृकुटि की नन्हीं सी सिलवट में

तुम्हें शब्दों की क्या आवश्यकता ??


तू कर ले फिर से प्यार ज़रा

कुछ दर्द सा दिल में होता है 
ऐ दिल आख़िर क्यूँ रोता है 
कुछ खोया तो कुछ पाया है 
कुछ अपना और पराया है 
तू ख़ुद को यूँ बेज़ार न कर 
तू सपनों का व्यापार न कर 
एक संगी जो तूने पाया है 
तुझको कुछ यूँ भाया है 
तू हाथ पकड़ ले अब उसका 
तू साथ पकड़ कर चल उसका 
चलता जा बस धीरे धीरे 
तू सुख की नदिया के तीरे
तू हाथ बढ़ा अम्बर छू ले 
लेकर अरमानो के झूले
चलता जा बस परवाह न कर 
तू किसी चीज़ की चाह न कर 
फिर इक दिन ऐसा आएगा 
तुझको सबकुछ मिल जाएगा 
तू वक़्त का दामन थाम ज़रा 
तू कर ले फिर से प्यार ज़रा ..........