Friday 28 September 2012

कुछ ख्याल ...दिल से (भाग - ११)


ये इश्क कहाँ किसी के रोके रुका है जो रुकेगा अब
ये इश्क है किया नहीं जाता हो जाता है जानते हैं सब
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जिंदगी तो ऊपर वाले ने बना कर दे दी
इसमें रद्दोबदल नहीं औकात हम इंसानों की 
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आँखों में हर तस्वीर बोलती है
दिल के हर राज़ खोलती है
झाँक कर देखो आईने में तुम
शुन्य भी वहाँ जिंदगी टटोलती है
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शुन्य में भी जीवन ढूंढें अगर तो बस प्राण ही तो चाहिए
बस कुछ साँसें कुछ धडकन और एक जान ही तो चाहिए
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मन का क्या है मन तो बांवरा है 
ये क्षण में तोला क्षण में माशा है 
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वो जिंदगी है जो तुम्हें इस पार खींचती है
जितना भी जतन कर लो जिंदगी यहीं बीतती है
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ख़फ़ा थे अगर वो हमारी फितरतों से
इशारा कर दिया होता अपनी नफरतों से
हम उनकी महफ़िल से नाता तोड़कर
निकल जाते उनकी हसरतों से 
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 कभी दिल में झाँक कर देखा होता 
हमारा आशियाँ तुम्हें वहाँ दिखाई देता 
कहाँ ढूंढती हो मुझको तुम इधर उधर 
बैठा हूँ मैं तुम्हारे दिल में बनाकर घर 
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भला इन रुसवाइयों से डरते हो क्यों तुम
'गर इश्क किया है तो खुलकर करो तुम
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उलझनों को अपनी सारी सुलझा लो तुम
चाहते हो जिसको उसे अपना बन लो तुम
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वो कौन है जो पास है तुम्हारे ....
और वो कौन था जो पास होकर दूर चला गया ..
रिश्तों में यूँ उथल पुथल जिंदगी का लेखा है
कौन किसको कहाँ मिल गया ये किसने देखा है
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यूँ रुसवाइयों से डर कर क्यों जीते हो
इश्क करके क्यूँ गम के आंसू पीते हो
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मेरी रुसवाइयों की तू परवाह ना कर
तेरे दिल में जो है तू उसे बयां कर
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हमसे ख़्वाबों में आने का वादा कर
खुद नींद के आगोश में खो गये
हम तनहा चाँद तकते रहे
वो चैन की नींद सो गये
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कुछ बातें बिना कहे समझी जाती हैं
इन बातों के लिये जुबां नहीं ऑंखें ही काफी हैं
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वक़्त किसी के लिए ठहरता नहीं
गुज़रा वक़्त कभी लौटता नहीं
जी लो ज़िन्दगी के हर पल को
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खामोशियों की जुबां को समझो तुम
यूँ बदनामियों से तो ज़रा डरो तुम ....
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नाकामियों का किस्सा छेड़ा था हमने
देखो हमीं पर तोहमत लगाते हैं वो
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नाकामियों को मेरे यूँ बदनाम ना करो
अगर करनी है वफ़ा तो सरेआम करो
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चाहत में अगर मोहब्बत होती तो यूँ नाकाम ना होती हमारी मोहब्बत
हम तो तेरी मोहब्बत की खातिर लुटाते रहे नींदें अपनी रातों की
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रुसवाइयां तुम्हारी हमें कभी मंज़ूर नहीं
देनी पड़े हमें जान अगर तो दे देंगे
रुसवा तुम्हें जीते जी होने नहीं देंगे
इतना यकीं जाने तुम्हे हम पर है या नहीं
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मोहब्बत पे है 'गर तुमको मेरे यकीं
लाख  दीवारें चाहे हो जाएँ खड़ीं ...
देखना एक दिन तुम मुझको मिलोगे यहीं ...
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हंसी हंसी में यूँ बात को तुम मेरे उड़ाओ नहीं
किया है मोहब्बत तो दिलाओ मुझको यकीं
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मुस्कराहट की भी अपनी जुबां होती है
जो ना जाने क्या क्या बयां करती है





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