Thursday 29 August 2013

कभी जब मैं ना रहूँ

कभी जब मैं ना रहूँ

तुम यह समझना

मैं कभी था ही नहीं

मेरा नाम-ओ-निशाँ

मेरा वज़ूद

मिटा देना

अपनी यादों की ज़मीं से

उसकी जगह

इक नयी दरख़्त लगा लेना

कुछ नयी बातों से

अपना मन बहला लेना

अपनी ज़िन्दगी के

उन लम्हों में

जिनमें कभी मैं रहा करता था

कुछ नए रंग भर लेना

कोई नयी तस्वीर उकेर लेना

कि यूँ बेरंग लम्हें

तुम्हें परेशां ना करें

मेरी यादें

उनमें दर्द न भर दें

तुम मेरी यादों के पर क़तर देना

इस से पहले

कि वो तुम्हारे दर्द का सबब बने

मिटा देना मेरी हर निशानी

भुला देना मेरी हर कहानी

मैं कहीं भी ना रहूँ

उन लम्हों में

जिनमें तुम जियो इक नए ढंग में

यही दुआ है मेरी

मिले ज़िन्दगी तुमको इक नए रंग में






क्या हुआ जो ....

क्या हुआ 

जो ये दिल धड़कता है 

क्या हुआ 

जो ये साँसें चलती हैं 

जो इक तू नहीं है 

तो इस धड़कन में जान नहीं है 

जो इक तू नहीं है 

तो इन साँसों में प्राण नहीं है 

जो इक तू नहीं है 

मेरी ज़िन्दगी नहीं है 

जो इक तू नहीं है 


मेरी बंदगी नहीं है 


बस इक सूनी सी तन्हाई है 


जिसमें बस इक तेरी परछाईं है 


कहाँ से ढूंढ कर लाऊँ तुझको 


कि अभी और जीना है मुझको 

Wednesday 22 May 2013

तुम से ही तो मैं हूँ प्रभु


तुम बसे हो

मेरे प्राण में

तुम बसे हो

मेरे ईमान में

तुम बसे हो

मेरे अभिमान में

तुम बसे हो

मेरे सम्मान में

तुम बसे हो

मेरे ध्यान में

तुम बसे हो

मेरे ज्ञान में

तुम बसे हो

मेरे उत्थान में

तुम बसे हो

मेरे अवसान में

तुम से ही तो मैं हूँ प्रभु

तुम हो तो मैं हूँ

अपने इस संधान में

मेरा मैं


रस्म-ओ-रिवाजों से दूर

इन समाजों से दूर

कोई ऐसी जगह हो

जहाँ मेरा मैं

मुझसे निर्भीक होकर कह सके

मैं उड़ना चाहता हूँ

उन्मुक्त

सभी बंधनों से मुक्त

और मैं

अपने मैं को कह सकूं

हाँ जाओ उड़ो

उन्मुक्त

सभी बंधनों से मुक्त

और उसे

वो सुनहरे पंख दे दूं

जो कभी

परियों की कहानी से

चुपचाप चुरा कर

अपने मन में रख लिया था

आज उस पंख को लगाकर

मेरा मैं

इतनी दूर निकला जाना चाहता है

कि फिर उसे

ना तो कोई आवाज़ सुनाई दे

ना कोई परछाईं दिखाई दे

ना धरती ना आसमान

ना चाँद ना तारे

ना सूरज ना पर्वत

ना खेत ना खलिहान

ना कोई रस्म ना कोई रिवाज़

ना ही कोई समाज

इन सब से मुक्त

एक अलग दुनिया

एक अलग आसमान

और उसमें

परियों वाले सुनहरे पंख लगाकर

उन्मुक्त सा विचरण करता

मेरा मैं

काश वो जगह होती कहीं

तो मुझसे

यूँ निराश ना होता

मेरा मैं





Sunday 19 May 2013

तुम


मेरे

रात दिन का

अन्धकार प्रकाश का

अनुराग विराग का

मिलन वियोग का

हर्ष शोक का

अथ इति का

बस तुम ही स्रोत हो

बस तुम हो


रात ख्वाब में थी

अब सामने

हक़ीक़त में हो

दिल में हो

दिमाग में हो

तुम तो मेरी कायनात में हो

तुम से इतर कुछ और नहीं

तुम हो तुम हो

और बस तुम हो

Wednesday 8 May 2013

ऐसे में हमारा मिलना हुआ

हम नींद में थे 

वो ख्वाब में थे 

ऐसे में हमारा मिलना हुआ 

हम सफ़र में थे 

वो मंजिल में थे 

ऐसे में हमारा मिलना हुआ 

हम सुर में थे 

वो साज़ में थे 

ऐसे में हमारा मिलना हुआ

हम सोज़ में थे 

वो आवाज़ में थे 

ऐसे में हमारा मिलना हुआ 

वो पंख में थे 

हम परवाज़ में थे 

ऐसे में हमारा मिलना हुआ 

वो खोज में थे 

हम राज़ में थे 

ऐसे हमारा मिलना हुआ 

वो इंतज़ार में थे 

हम दीदार में थे 

ऐसे में हमारा मिलना हुआ 

वो गुल में थे 

हम गुलज़ार में थे

ऐसे में हमारा मिलना हुआ  

वो हुस्न में थे 

हम इश्क में थे 

ऐसे में हमारा मिलना हुआ 

वो जान में थे 

हम जिगर में थे

ऐसे में हमारा मिलना हुआ 

वो रूह में थे

हम जिस्म में थे 

ऐसे में हमारा मिलना हुआ 

वो दिल में थे 

हम धड़कन में थे 

ऐसे में हमारा मिलना हुआ 

हम सीप में थे 

वो मोती में थे 

ऐसे में हमारा मिलना हुआ 

वो आँख में थे 

हम काजल में थे 

ऐसे में हमारा मिलना हुआ 

वो होठों में थे 

हम लाली में थे 

ऐसे में हमारा मिलना हुआ

वो चन्दन में थे 

हम पानी में थे 

ऐसे में हमारा मिलना हुआ 

वो सूरज में थे 

हम किरणों में थे 

ऐसे में हमारा मिलना हुआ 

वो बादल में थे 

हम बिजली में थे 

ऐसे में हमारा मिलना हुआ 

तुम्हारा आना


तुम्हारा आना 

जैसे सुबह की किरणों का 

मेरे आँगन में उतर जाना 

तुम्हारा मुस्कराना 

मेरे दिल की कलियों का 

खिल जाना 

तुम्हारा खिलखिलाना

जैसे मन मंदिर में

सैक़ड़ों घंटियों का 

एक साथ बज जाना

तुम्हारा रूठना 

जैसे सारी कायनात का 

सहम कर ठहर जाना 

तुम्हारा होना 

मेरे होने की 

वजह होना 

Monday 29 April 2013

मेरे ख्वाब

ना जाने

और कितनी रातें

गुज़रेंगी

उन ख़्वाबों के बिना

जिनमें कभी

मेरी ज़िन्दगी रहा करती थी

तुम क्या गयीं

इन ख़्वाबों से

जैसे मेरी

ज़िन्दगी चली गयी

तुम्हें तो शायद

मालूम भी न हो

कि यूँ मेरे ख़्वाबों में

तुम ज़िन्दगी बन कर रहती थी

जाने वो ख्वाब

इन आँखों से

कहाँ चले गए

जैसे किसी ने उन्हें

मेरी आँखों से छीन लिया हो

कहीं ये तुम्हारी जिद तो नहीं

मेरी आँखों से

मेरे ख्वाब चुराने की

कि मैं इनके सहारे

ज़िन्दगी जी न सकूं

पर मैं भी

इस जद्दोजहद में हूँ

कि उन ख़्वाबों को

कहीं से ढूंढ कर लाऊं

इन आँखों में सजाऊं

और

इनमें

अपनी ज़िन्दगी गुज़ार दूं

Sunday 28 April 2013

बंज़र आँखें

कितनी रातें

बीत गयीं

इन आँखों में कोई

ख्वाब नहीं

ख्वाब कहाँ से होंगे

जब आँखों में

नींद नहीं

बंजर सी क्यूँ हो गयीं

इन आँखों की ज़मीं

खारे पानी से

सींचते रहे हम इन्हें

शायद कहीं

यही वजह तो नहीं

अब तो बस

यूँ ही

ये बंज़र आँखें

तकती रहेंगी राह यहीं

कि कभी कोई ख्वाब

जो राह भटके ही सही

इन आँखों में

पा जाए पनाह कहीं


मोहब्बत


दूर तक

देखना

जहां तक

निगाहों की हद है

हर शय में

तुम्हें

बस मोहब्बत ही नज़र आएगी

'गर दिल में

अपने मोहब्बत का

आशियाना बनाओगी

कायनात भी

मोहब्बत के रंग में

रंगी हुई नज़र आएगी

'गर दिल में

अपने मोहब्बत की

लौ जलाओगी

हर लम्हे में बस

मोहब्बत ही मोहब्बत

पाओगी

'गर दिल में

अपने मोहब्बत का

अरमां जगाओगी

मोहब्बत कर के देखो

खुदा की इबादत करना

सिख जाओगी

Saturday 27 April 2013

उसके होने का अहसास

कभी कभी

यूँ लगता है

कोई मेरे आसपास है

या फिर

उसके होने का अहसास है

उसके आते ही

हवाओं में

खुशबू सी तैर जाती है

और हवाएं बालों में

जैसे उँगलियाँ फेर जाती हैं

उसके पास होने का अहसास

कितना मदभरा है

जैसे हज़ारों जामों का नशा

सर पर चढ़ा है

उसकी बातों में

प्यार का सिलसिला है

जैसे अभी अभी

कहीं गुलाब खिला है

उसके आते ही

हर शय गुनगुनाने लगती है

गीत मोहब्बत के सुनाने लगती है

जाने कैसा जादू है

उसके आने में

बहार सी छा जाती है

वीराने में

लब लरज़ने लगते हैं  यूँ

जैसे कुछ कहना चाहती हों

धडकनें बेतरतीब सी हो जाती हैं

जैसे उनके दिल में रहना चाहती हों

भले ही तुम इक अहसास रहो

पर यूँ ही मेरे आसपास रहो

Monday 22 April 2013

कभी यूँ हो कि

कभी यूँ हो कि

मैं कोई ख्वाब बुनूं

और उस ख्वाब में

बस तुम हो

या फिर

यूँ हो कि

मेरे ख़्वाबों की हर ताबीर में

तुम, तुम और बस तुम हो

या यूँ हो कि

जब भी हम तस्सवुर किया करें

उस तस्सवुर में

बस इक तुम हो

या यूँ हो कि

मेरी हर राह जहां से भी गुज़रे

उसकी हर रहगुज़र पर

बस तुम हो

या यूँ हो कि

मैं कोई भी राह चलूँ

हर राह की मंजिल

बस तुम हो

या फिर यूँ हो कि

तुम्हें सोचते हुए

मैं जब भी अपनी आँखें खोलूँ

मेरे सामने मेरे हमदम

बस इक तुम हो

और यूँ हो कि

जो भी हो इसी जनम में हो

क्यूंकि मैं नहीं जानता

जनम जनम का बंधन

बस इतना जानता हूँ कि

इस जनम में तुम हो

Wednesday 13 March 2013

यह सफर......



ठहर गई सी लगती है जिन्दगी
उस माेड़ पर
जहाँ से तुम मुड़ गये थे
उस राह पर
जिस पर नहीं थी
मेरी रहगुज़र
अब न चाहत है उस मंजिल की
जिसके लिये था यह सफर
अब ताे बस है इंतज़ार
कब यह रात ढले
कब हाे इक नई सहर
तुम फिर हाे मेरे साथ
मेरी हमसफर
और हम चल पड़ें
इक नई राह पर
और शुरू करें
इक नया सफर

Monday 4 March 2013

तुम्हारी यादें


देश की मिटटी की सोंधी महक
परदेश चली आई है
मेरी डायरी के उन पन्नों में
मेरे साथ
जिसमें मैंने
तुम्हारा नाम लिखा था
कितनी यादें भी
चली आयीं हैं
उस महक के साथ
तुम्हारा मुस्कुराना
तुम्हारा रूठना
मेरा मनाना
वो इंतज़ार
फिर वस्ल-ए-यार
और फिर एक लम्बा इंतजार
तुम समझती हो न
मैं जब भी तुमसे यूँ दूर जाता हूँ
तुम्हारी यादों के साथ साथ
उस मिटटी की महक भी चली आती है
मेरी डायरी के उन पन्नों में
जिसमें मैंने तुम्हारा नाम
जाने कितनी बार
और कितनी हरफ में लिखा था
तुम जब भी याद आई थी
आज भी
तुम बहुत याद आ रही हो
और तुम्हारे साथ
उस मिटटी की महक भी आ रही है
अपने देश की मिटटी की सोंधी महक

Thursday 21 February 2013

तुम्हारी यादें ...मेरे अहसास


प्रिये

अब जब तुम नहीं हो

मेरे पास

मैं समेट रहा हूँ

तुम्हारी सारी यादें

तुम्हारे हर अहसास

कि रख सकूं इन्हें

अपने ह्रदय के अन्दर

सुरक्षित

सबकी नज़रों से दूर

सबकी छुअन से

वंचित

हर उस जगह को

जहाँ तुम्हारे कदम पड़े थे

मैंने मंदिर बना दिया है

हर उस जगह को

जहाँ तुम पल भर को भी ठहरी थी

तुम्हारी यादों से सजा दिया है

हर उस चीज़ से

जिसे तुमने छुआ था

तुम्हारे स्पर्श का आभास हुआ है

तुम्हारे बदन की खुशबू

हवा में ऐसे घुल मिल गयी है

मेरी साँसों को उसने महका दिया है

अब जब तक

तुम फिर नहीं आओगी

इन्हीं बटोरी हुयी यादों

और अहसासों के सहारे

तुम्हारे फिर से आने का

मैं इंतज़ार करूंगा

प्रिये


Sunday 17 February 2013

ज़िन्दगी के थपेड़े

ज़िन्दगी के थपेड़ों से

घबराकर

जो ज़िन्दगी से भागा

ज़िन्दगी की दौड़ में

वही रहा

सब से बड़ा अभागा

ज़िन्दगी थपेड़े यूँ लगाती है

कि हम खुशियों के

मखमली गोद में

ऐसे अपंग न बन जाएँ

कि जब रास्ते दुरूह हों

हम अपाहिज न नज़र आयें

जो उन थपेड़ों से डटकर

मुकाबिल होते हैं

उन्हें असम्भव भी

हासिल होते हैं

खुशियों की मखमली गोद में

वो कभी सोते नहीं

इसलिए ज़िन्दगी की दौड़ में

वो कभी कुछ खोते नहीं

खुशियाँ मिलने पर

न तो वो आसमान में उड़ते हैं

न ही ग़मों के दौर में

ज़मीन अपनी छोड़ते हैं

खुदा ने हर इंसान को

यह कूबत दी है

कि जिसने जैसा चाहा

उसने वैसी ज़िन्दगी जी है

अबकी जब भी थपेड़े आयें

तुम कुछ ऐसा करना

कि तुम्हें और तुम्हारी हस्ती को

वो कुछ और दृढ़ कर जाएँ




Tuesday 5 February 2013

हमारा गीत

कुछ हम कहें 

कुछ तुम कहो 

आओ मिलकर 

एक गीत रचें 

नयी उमंग का गीत 

हमारे इस मिलन का गीत 

आज इस नए शुरुआत का गीत 

हम सब के जज़्बात का गीत 

गीत सपने सुहानों का 

गीत दिल के अरमानों का 

बना दें अमर उस गीत को 

हमारे तुम्हारे प्रीत को 

जग जब भी यह गीत गायेगा 

हमारा पुनर्जन्म हो जायेगा 

Tuesday 29 January 2013

आह .....

आह ....

तुम चले गए

सब कुछ

अधुरा छोड़ कर

घर के कितने सारे काम

रुके पड़े थे

कि तुम आकर उन्हें

निपटाओगे

पर मालूम है

अब तुम नहीं आओगे

हम सब को

तुम याद बहुत आओगे

कितनी संक्रामक थी

तुम्हारी हंसी

कितने रोतों को हंसा देती थी

तुम्हारी हंसी

तुम्हारे ठहाके

गूंजते रहेंगे हमारे कानों में

तुम्हारी बातें

तुम्हारी मुलाकातें

भटकती रहेंगी हमारे वीरानों में

तुम सा जिंदादिल इंसान

न कभी हुआ है

न कभी होगा

हम इंसानों में

हम ढूँढा करेंगे तुम्हें

हर महफ़िल हर वीरानों में

इक आह सी निकला करेगी

हमारी तानों में

जब भी हम गुज़रा करेंगे

उन सुनसानों में

जो छोड़ गए तुम

अपने पीछे

हमारे दिलों में

हमारे अरमानों में






Wednesday 23 January 2013

मेरा मन


तुम्हारे स्पर्श को 

क्यूँ मेरा मन

यूँ हर पल तड़प तड़प जाता है 

क्यूँ मेरा मन

तुम्हारे पास आने को   

हर पल छटपटाता है 

और जब कभी 

मेरा मन 

तुम तक पहुँच भी जाता है 

तुमको छुए बिना ही 

तमसे मिले बिना ही 

क्यूँ वापस चला आता है 

ये मेरा मन 

तुमको सदियों से चाहता है 

पर तुमसे कह नहीं पाता है 

कैसे इस मन को समझाऊं

मैं कैसे इसको बतलाऊं

तुम मेरी कल्पना हो 

और कल्पना को कभी

किसी ने छुआ है आज तक

पर मेरा मन  

फिर भी तुमको छूने के लिए 

हर पल छटपटाता है 

तुम्हारे पास आने को

तड़प तड़प जाता है  

Saturday 19 January 2013

मेरे चैन का वो टुकड़ा

कहीं खो गया है मुझसे

मेरे चैन का वो टुकड़ा

जिसके सहारे कभी मैं

पतंगों सरीखा उड़ता था


शायद ज़िन्दगी की आपा धापी में

या फिर रिश्तों की आवा जाही में

कहीं खो गया है मुझसे

मेरे चैन का वो टुकड़ा


उम्मीदों के ऊंचे टीलों पर

मन के बंजर सपाट मीलों पर

कहीं खो गया है मुझसे

मेरे चैन का वो टुकड़ा


ज़िन्दगी के बोझ तले

जाने कितने सपने कुचले

वहीँ खो गया है शायद

मेरे चैन का वो टुकड़ा



Tuesday 15 January 2013

उनकी खामोशी


उनसे ये कहा न जाए

कहे बिना रहा न जाए

उनकी खामोशी अब खलती है

दिल में शूल बन कर चुभती है

ख़ामोशी को बस एक पैगाम दे दो

मेरी मोहब्बत को एक नाम दे दो

जो अगर न ये कर सको तो

मुझको ज़हर का इक जाम दे दो

Sunday 13 January 2013

अभिमान

देखता हूँ जब तुम्हें

यूँ ही बैठे बैठे

कभी कोने से नैनों के

भर उठता है मन

अभिमान से

शायद

तुम्हें पाने का अभिमान

या फिर तुम्हारा

यूँ मेरे होने का अभिमान

अभिमान तुम्हारे प्यार का

अभिमान तुम्हारे दुलार का

अभिमान तुम्हारी फ़िक्र का

अभिमान तुम्हारे ज़िक्र का

बस यूँ ही अभिमान से भरे हुए मन में

उठते हैं हाथ दुआओं में

कि हर जीवन में

हे ईश्वर

मेरे इस अभिमान का

मान रखना

और हर जनम

तुम यूँ ही

मेरा अभिमान बनना

चाँद क्यूँ उदास है आज

चाँद

क्यूँ उदास है आज

कोई नहीं

उसके पास है आज

कोई अपना बिछड़ा है

उसका तभी

इतना हताश है आज

उसके होंठो पर

ना जाने क्यूँ

इतना त्रास है आज

तभी शायद मद्धम

उसकी उजास है आज

Wednesday 9 January 2013

मैं तुमसे प्यार करता हूँ

जब मैं तुमसे कहता हूँ 

मैं तुमसे प्यार करता हूँ 

यह मैं नहीं कहता 

न ही मेरी जुबां यह कहती है 

यह तो मेरे दिल की बात 

मेरी जुबां से निकलती है

आँखों से भी मेरे यूँ लगता हो कभी

जैसे वो भी यही कहता हो कभी

इसमें आँखों की नहीं कोई गलती

यह भी है उस दिल की ही लगी 

अब कैसे दिल को समझाऊं 

कैसे इसको बतलाऊँ 

कि यूँ

औरों का सहारा लेकर 

अपनी बात न कहा करे 

'गर कहनी है अपनी बात 

तो अपनी कोई जुबां चुना करे 

Tuesday 8 January 2013

कभी

कभी

हम उनके

चाहतों के साए में 

पलते थे 

कभी 

धड़कन बन कर 

उनके दिल में 

मचलते थे 

कभी

प्यार की आंच से

ख्वाब बन कर

आँखों में

पिघलते थे

कभी

उनके दिल से

इस दिल के अरमान

निकलते थे

कभी

हम हाथ थामे

साथ साथ

यूँ ही

चलते थे

कभी

राहों में उनके

हमारे प्यार के दिए

जलते थे

कभी

उनके जुल्फों के साए में

बैठे बैठे

न जाने कब ये दिन

ढलते थे

कभी

दिन के ढलते

रात हर महफ़िल में

उनकी आँखों से पीकर

हम खुद ही

सम्हलते थे

बस

उन लम्हों की यादों को

सीने से लगाए

यूँ ही जीता हूँ

कि

कभी

जो तुम कहीं से

फिर आ जाओ

तो हर उन लम्हों को

हम फिर से जी लेंगे

जिन लम्हों में

हम

कभी

साथ साथ

ज़िन्दगी को यूँ ही

जिया करते थे










औरों की खातिर

कैसी है यह जिंदगी

जिसका कोई लम्हा

मेरा नहीं

इसमें

मेरे ख़्वाबों की कोई

जगह नहीं

मेरे अरमानों की कोई

सुबह नहीं

पर जिए जा रहा हूँ

यह ज़िन्दगी

औरों की खातिर

सबकी चाहत पूरी करने को

सबकी आस पूरी करने को

मुद्दे तो बहुत हैं

जीने के लिए

पर इनमें

मेरा कोई मुद्दा नहीं

क्यूँ जी रहा हूँ

इस तरह

जब कि मुझे भी मालूम है

मेरे जीने से

मेरी ज़िन्दगी का

कोई मतलब नहीं

बस जिए जा रहा हूँ

औरों की खातिर

कि सब जी सकें

अपनी खातिर















सवेरे का सूरज

कभी ऐसा हो कि

सवेरा हो

पर उस सवेरे से पहले

सवेरे का सूरज देखने को

मैं ना रहूँ

उस सवेरे से पहले

किसी एक पल में

मेरे सारे पल ख़त्म हो जाएँ

और मैं

उस सवेरे के सूरज से

अनजान रहूँ

फिर क्या

उस सवेरे के सूरज की

किरणों से

तुम मेरा होना या ना होना

पकड़ पाओगे

नहीं न !

इसलिए तो कहता हूँ

मैं इक हवा का झोंका हूँ

आया हूँ

कुछ पल बह कर

जाने को

वो पल जब ख़त्म हो तो

मुझे रोको नहीं

जाने दो

क्योंकि

कोई और हवा का झोंका

बहता हुआ आएगा

और मेरी जगह लेगा

और दुनिया

यूँ ही सतत चलती रहेगी













रिश्तों का अर्थशास्त्र

अक्सर हमारे रिश्ते

अर्थशास्त्र के पैमाने पर भी

खरे उतरते हैं

जिन रिश्तों की आपूर्ति

बहुत ज्यादा होती है

वो अक्सर

मांग में कम ही रहते हैं

जो रिश्ते

हमें मुश्किल से मिलते हैं

वो मांग में

हमेशा बढ़ कर रहते हैं

रिश्तों में जहां

उम्मीदें जुड़ कर

उनका मोल बढ़ाती हैं

वो रिश्ते फिर

मांग में कम ही रह जाती हैं

जो रिश्ते

प्यार में ढल कर

मांग के अनुरूप

खुद को ढालते हैं

वो रिश्ते सबसे ज्यादा

पूजे जाते हैं

और मांग में भी

सबको पीछे छोड़ जाते हैं

ऐसे रिश्तों का ग्राफ

हमेशा धनात्मक ही बढ़ता है

और हमेशा

सबकी आँखों में रहता है






नया सहर

मेरे किसी रात की

सहर न हो अगर कभी

ये चिराग जलते जलते

बुझ गयी जो अगर कभी

तो मुझको मत ढूंढना यारों

गम में मत डूबना यारों

चीर निद्रा में सोने के बाद

मैं नए सहर में जागूँगा

किसी नए शहर में आऊंगा

जो यह रूप न फिर धर पाया

तुमको अगर मैं नहीं नज़र आया

धीर तुम मत खोना यारों

भीर तुम मत होना यारों

मैं फूल बनकर आऊंगा

उन राहों में बिखर जाऊँगा

जिन राहों पर हम साथ चले

गुलमोहर के साए तले

या फिर

मैं पंछी बन कर आऊंगा

प्यार के नगमे सुनाऊंगा

जो हमने गाये थे कभी

साथ गुनगुनाये थे कभी

अगर जो

मैं भंवरा बन कर आया

और फूल फूल मंडराया

मेरी गुन गुन सुनकर जानोगे

वो मैं ही हूँ मानोगे

पर कमी हमारी खलेगी ज़रूर

रोने को भी होगे मज़बूर

चाहे जो भी रूप धर आऊंगा

फिर से वही खुशियाँ ले आऊंगा





Monday 7 January 2013

महफ़िल मेरे ख़्वाबों की


कल शाम सुरमई आसमां ने

मुझसे पूछा

क्यूँ शाम तुम्हारी है तनहा

कोई बात है तो मुझ को बता

मैंने कहा

वो कह कर गए हैं आने को

ख़्वाबों में महफ़िल सजाने को

बस अब शब का इंतज़ार है

आँखें ख़्वाबों को बेक़रार है

कहीं नींद खफा न हो जाये

दुश्मन-ए-वफ़ा न हो जाये

बस कुछ ऐसा जतन कर देना

नींद को इतना कह देना

वो राह इन आँखों की भटके नहीं

किन्हीं और आँखों में अटके नहीं

मैंने पलकों की पालकी बिछाई है

सेज नींद की सजाई है

नींद के सेज पर जाते ही

ख़्वाबों के आँखों में आते ही

महबूब के कदमों की आहट से

उनकी मनमोहक मुस्कराहट से

सज उठेगी महफ़िल मेरे ख़्वाबों की

महक उठेगी पंखुड़ी उनके गुलाबों की

तुम एक जतन और कर देना

शब् को वहीँ पर रोक लेना

जब बाहों में हो मेरा महबूब

उसकी आँखों में मैं रहा हूँ डूब

वो वक़्त कहीं जो गया निकल

फिर हो जाऊँगा मैं विकल

ना जाने कब फिर उनका आना हो

यूँ ख़्वाबों की महफ़िल सजाना हो

तुम सूरज को यह समझा देना

कुछ वक़्त ढले आये बतला देना

महबूब को मेरे यह मत बतलाना

पूछे भी अगर तो मत जतलाना

कि हमने तुमसे कोई गुजारिश की है

ख़्वाबों में उनको लाने की साज़िश की है















Sunday 6 January 2013

बस इक तुम हो


वसंत की बहार में
जेठ की पछार में
सावन की फुहार में
शीत की बयार में
                       बस इक तुम हो

ताल की पसार में
झरने की फुहार में
नदी की धार में
सागर के विस्तार में
                       बस इक तुम हो

बागों की बहार में
कलियों की शुमार में
फूलों की कतार में
खुश्बू की खुमार में
                      बस इक तुम हो

दिल की हर पुकार में
मन के लाड़ दुलार में
मेरे हर इकरार में
सपनों के संसार में
                      बस इक तुम हो