Tuesday 4 September 2012

कुछ ख्याल.....दिल से (भाग - ४)


कुछ रिश्ते बेनाम होते हैं
क्यूंकि नाम अक्सर बदनाम होते हैं 
मोहब्बत की है तो फना होना होगा 
सुना है चाहने वाले क़त्ल-ए-आम होते हैं


उनके साथ रहते रहते उनसे चाहत सी हो गई,
उनसे बात करते करते हमें आदत सी हो गई,
एक पल भी ना मिले तो नज़रे बेचैन सी रहती है,
दोस्ती निभाते निभाते हमें मोहब्बत सी हो गई


ऐसी ही होती है जिंदगी 
कोई फूलों के सेज पर सोता है
पर सपने में कांटे बोता है 
और कोई सड़कों पे रात गुजारता है ...
पर तारों की छांव उसकी रात संवारता है 

तडपता है ये दिल क्यूंकि
धडकता है ये उनकी आहट से 
अब तो सांस भी उनके आने से चलती है ...
फूल खिलते हैं उनकी मुस्कराहट से ...


क्यूँ तुम मिलने से पहले बिछड़ने की बात करते हो
कहते हो मुझसे प्यार है मुझ पर मरते हो
क्यूँ नहीं यकीं आता मेरी मोहब्बत के वादों पे
क्यूँ करते हो शक हरदम मेरे इरादों पे


काली रात का ये रूप जाना ना था 
बादल चाँद चांदनी सब से अनजाना था ...
इतनी सारी संवेदनाएं चारो तरफ बिखरी रहीं  
लगता है इधर मेरा आना जाना ना था


जिन ख़्वाबों की ताबीर नहीं 
उन्हें आँखों में मत सजाओ तुम 
वो नासूर बन कर चुभेंगे
जब ख्यालों में उनको लाओगे तुम


अक्सर हम अपराध बोध लिए जीते हैं ...
अमृत को भी ज़हर समझ कर पीते हैं ...
ज़िन्दगी जीने के इतने ढंग हो गए हैं  ...
हमारी सोच इसलिए इतने तंग हो गए हैं ...



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