Wednesday 12 September 2012

कुछ ख्याल.....दिल से (भाग - ६)

बढ़ता रहा बदन में मेरे दम-ब-दम लहू सारी रात
देखा तो सीने पे था वो दस्त-ए-हिना सारी रात
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नहीं भूलता उनकी रुखसत का वक्त
उनसे रो रो के मिलना बला हो गया
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दोस्तों से इस क़दर सदमें उठाये हैं जान पर
दिल से दुश्मन की अदावत का गिला जाता रहा
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जाने कितने गम उठाये हमने जिंदगी में
अफ़सोस मेरी वफ़ा मुझको ही रास ना आई
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ऐसा नहीं कि बस गुल की फिकर है मुझे
काँटों से भी निबाह किये जा रहा हूँ मैं
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मेरे गुनाहों का ये सिला दिया मुझको मेरे मौला
मेरी मोहब्बत को ही मुझसे जुदा किया मेरे मौला
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कहीं ये कोई धोखा तो नहीं मेरी आँखों का
ये तुम हो मेरे सामने या फिर तस्वीर-ए-यार है
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मेरी आँखों को नसीब यूँ दीदार आपका
ये क़यामत आ गई या ख्वाब था कोई
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छोड़कर यूँ मेरा चमन आखिर गये सब गुल कहाँ
यूँ तो जाना ना था बुलबुल को जलाकर आशियाँ अपना
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आंसू हमारी आँखों से यूँ ही नहीं बहते हैं
मोहब्बत के गम हम आंसुओं से कहते हैं
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नफरत भी उनकी जाने क्यूँ हमको प्यारी है
नफरत में आखिर उनके अंदर सोच हमारी है
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हार जीत की प्यार में कोई जगह नहीं होती
क्यूंकि प्यार में हार जीत की वजह नहीं होती
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उल्फत के रस्म यूँ निभाते रहे हम
अपनी खुशियाँ उन पर लुटाते रहे हम
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जिंदगी जब भी बेहाल करती है
तेरी मोहब्बत बड़ा कमाल करती है
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मेरे ख्वाबों में तू इस तरह से आती है
मेरी जिंदगी ख़्वाबों में भी मुस्कुराती है 

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