Wednesday 26 September 2012

कुछ ख्याल.....दिल से (भाग - १०)

मैं नहीं कहता कि वो बेवफा है
वफ़ा क्या है उसे नहीं पता है
---------
कितना सुकूं था जब ये इश्क ना था 
इश्क करके क्यूँ वो सुकूं मैं गंवा बैठा
---------
सुकूं छीन कर इस दिल का बड़े सुकूं से रहते हैं वो
कैसे बेदर्द हैं जो हमारे दर्द से बेखबर से रहते हैं वो
---------------
जिंदगी ना जाने क्या क्या सपने दिखाती है 
पर उनके पूरा होने से पहले नींद टूट जाती है 
--------------
मेरे इश्क के चर्चे लोगों ने ऐसे किये 
गोया ज़माने में इश्क बस इक हमने किये 
--------------
मोहब्बत का क्यूँ मेरे यूँ तमाशा बनाते हो
अपनी नाकामियां तुम मुझ पर आजमाते हो  
---------------
नहीं सोचा था यूँ बात बात में बात जायेगी 
उनसे होती थी जो कभी वो मुलाकात जायेगी  
----------------

तुमसे दूरी हो या नजदीकियां
इस दिल में हैं वही बेचैनियाँ
जाने इस दिल का मुद्दा क्या है
चाहता है तुम्हें या तुमसे खफा है 

----------------
तमाम मुश्किलों के बावजूद हमने चाहा जिंदगी को 
मगर अफ़सोस वफ़ा मेरी मुझको ही रास ना आई 
---------------
हों तुझसे कभी दूर ये दिल नहीं चाहता 
क्या दिल की बात कोई सुन नहीं पाता
---------------
कैसे यकीं दिलाऊँ अब तुमको अपनी मोहब्बत का 
तमाम कोशिशें कर लीं मैंने पर नाकाम रही मेरी वफ़ा  
------------

बिछड़ने का मलाल लिये फिरते रहे हम उम्र भर 
तुमसे हंस हंस कर मिलना सितम ढा गया 
------------

किसी की मोहब्बत को यूँ आजमाया नहीं करते
ये बड़ी किस्मत से होती है इसे ज़ाया नहीं करते
------------
जागते आँखों के ख्वाब का क्या भरोसा 
सुना है नींद में देखे ख़्वाबों की ताबीर होती है 
------------

प्रेम का ढाई आखर पढ़ न सका जो वो अनपढ़ है 
चाहे कितना पढ़ लिख लो ये न पढ़ा तो अनपढ़ है 


No comments:

Post a Comment