Friday 11 July 2014

कभी हम मिले थे

कभी हम मिले थे 

फूलों से खिले थे 

हवाओं में खुशबू थी 

फिज़ाओं में जादू थी 

बस मुस्कराहट ही मुस्कराहट थी 

हर तरफ खुशियों की आहट थी 

फिर एक दिन जाने क्या हुआ 

जैसा पहले कभी नहीं हुआ 

जाने कहाँ से इक सैलाब आया 

तिनके तिनके से हमारा आशियाँ बहाया 

पल भर में कैसे सब कुछ बिखर गया 

मेरा प्यार मुझसे बिछड़ गया 

अब तो बस तनहाई है 

तू नहीं बस तेरी परछाईं है 

तरसती हैं निगाहें 

तड़पती हैं बाहें 

इंतज़ार के पल 

करे बेसुध बेकल 

आँखें हैं पथराई सी 

साँसे हैं घबराई सी 

ना दिन डूबा ना शाम ढली 

ना रात हुआ ना सहर मिली 

ज़िन्दगी जैसे ठहर गई 

उस तूफां से सिहर गई 

मन कहीं उलझा उलझा सा है 

हर पल बुझा बुझा सा है 

खुशियों को जाने किसकी लगी नज़र 

दुआओं में भी अब नहीं रहा असर 

कब आओगे तुम कुछ तो बता दो 

कहाँ चले गए कुछ तो पता दो 

तुम जब भी आओगे 

जीने को तैयार मिलूँगा 

'गर ज़िन्दगी के इस पार नहीं 

तो मर कर उस पार मिलूँगा 

रूह मेरी तड़पती रहेगी 

जब तक तुमसे नहीं मिलेगी 

अब रूह को मेरी और मत तड़पाना 

मेरी ज़िन्दगी तुम जहाँ भी हो 

मेरी आह सुन बस चली आना 








9 comments:

  1. व्व्वाआह्ह्ह्ह्ह
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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    1. आपका ह्रदय से आभार पूनम जी !!!

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    1. आपका ह्रदय से आभार कल्पना जी !!!

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  4. bahut khoobsurat kavita.dil ko chhooti hui.

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    1. आपका ह्रदय से आभार सुनीला जी !!!!

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  5. Speachless. .. dil ko chhoo gayi... bahut sunder kaha hai

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