Friday 29 June 2012

रौनक-ए-रुखसार




हम तो उनके चेहरे से 

उनके दिल का हाल जान लेते थे 

उनकी हर मुस्कराहट को 

अपना मान लेते थे 

अब जाकर बताया उन्होंने 

वो मुस्कराहट नहीं खुमारी थी 

और वो रौनक-ए-रुखसार 

इश्क़ की बीमारी थी 

ख़फ़ा थे अगर वो


ख़फ़ा थे अगर वो हमारी फितरतों से 

इशारा कर दिया होता अपनी नफरतों से 

हम उनकी महफ़िल से नाता तोड़कर ...

निकल जाते उनकी हसरतों से 



मेरी परछाईं


ये कौन है जो तनहाइयों में आवाज़ देता है 

ये कौन है जिसकी ख़ामोशी नगमे सुनाती है 

शायद मेरी परछाईं है जो मेरे साथ साथ आती है 

और तुम्हारे साथ होने का एहसास दिलाती है 



हमारा साँझा प्यार



मैंने जिंदगी में जो भी पाया 

जो भी खोया 

सब कुछ तुमसे साँझा किया 

फिर कैसे तुम्हारा विश्वास डोला 

कैसे तुम्हारा मन यह बोला 

जो कुछ हम में साँझा था 

अब उसका बंटवारा कर लो

ज़िन्दगी भर का संजोया हुआ विश्वास 

इतनी आसानी से कैसे लौटा सकती हो 

वो जो कुछ भी साँझा था हमारे बीच 

कुछ अनकहे पल कुछ अनसुनी बातें

कैसे ख़त्म कर सकती हैं उन्हें 

मैंने वो सब कुछ वैसे ही 

संजो कर रखा हुआ है 

क्योंकि वो तुम्हारा है बस तुम्हारा 

उसे कोई और नहीं बाँट सकता 

मेरी इस ज़िन्दगी में 



मौन

मौन को समझो तुम 

मौन कितना कुछ कहता है 

पर मौन चुप ही रहता है 

चुप रहकर सब कुछ कहता है

मौन की कोई भाषा नहीं 

मौन की कोई परिभाषा नहीं 

मौन सा कोई संवाद नहीं

मौन का कोई स्वाद नहीं 

मौन कभी तलवार है 

तो मौन कभी सुविचार है 

मौन कभी इकरार है 

तो मौन कभी इनकार है 

मौन कभी तकरार है 

तो मौन कभी प्यार है 

मौन से भला कौन जीता

मौन की शक्ति अपार है 


तुम यूँ मेरी यादों में आया ना करो

तुम यूँ मेरी यादों में आया ना करो

मेरी वीरानियों को यूँ बढ़ाया ना करो

दिल तुम्हारे जुदाई से अभी उबरा नहीं

अब इसे मुश्किल में लाया ना करो

मेरी महफिलों में तुम अब नहीं हो

मुझे ये एहसास दिलाया ना करो

मेरी तनहाइयाँ तुम्हारी बदौलत हैं

मुझको ये बताया ना करो

मेरी ज़िन्दगी है काँटों की सेज़

तुम फूलों की तोहमत लगाया ना करो

मेरी उम्मीदों को बेरंग कर

अब रंगों के धुल उड़ाया ना करो

मैं इस नाउम्मीदी से वाबस्ता हो सकूं

मेरे ख़्वाबों में भी तुम आया ना करो



पल दो पल


क्या कहा 

क्या ना कहा 

कुछ याद नहीं 

बस पल दो पल को 

हम जी गए 

और कोई फ़रियाद नहीं 




अभी कुछ दिन हुए



अभी कुछ दिन हुए 

उनसे मुलाक़ात हुई

फिर उनसे बात हुई 

बातों का सिलसिला ऐसा चला 

जज्बातों की आंधी चलने लगी 

एह्सासों का सैलाब उमड़ पड़ा 

वो जन्मों जन्मों से अपने लगने लगे 

उनसे रिश्ते पुराने निकलने लगे 

उनका मुस्कुराना 

मुड़ मुड़ कर मुझे देखना 

इठलाना इतराना 

और मेरा यूँ नाज़ उठाना 

सब कुछ पहले सा लगने लगा 

कौन से रिश्ते में हम बंधे थे 

जाने कब कहाँ हम मिले थे 

शायद किसी और जनम की बात हो 

किसी और धरती की मुलाकात हो 

कैसे ये रिश्ते बनते हैं 

रूहों से रूह जुड़ते हैं 

तभी तो जन्मों जन्मों तक 

ये रिश्ते ऐसे ही पनपते हैं

बिछड़ते हैं फिर मिलते हैं 







हम कौन हैं

हम कौन हैं

हमारा वजूद क्या है

हम सब

एक रचे रचाए कहानी के पात्र हैं

जिसको हर पल

दी गयी भूमिका अदा करनी है

दिए गए बोल बोलने हैं

साँसों की शुरुआत से 

आखिरी सांस तक

हम बंधनों में बंधे हैं

चाह कर भी हम

इन बंधनों को तोड़ नहीं सकते

क्यूंकि हम हर पल

इन्हीं दायरों में परखे जाते हैं

हम हम होकर भी हम नहीं हैं

क्यूंकि हमारे ऊपर

बंदिशों के पहरे लगे हैं

कोई ये क्या जाने

यहाँ पर हर इंसान

खुद में एक अजूबा है

हर के अन्दर एक अलग जज़्बा है

कभी इन्हें बंदिशों के बाहर परख कर देखो 

इनका सही रूप नज़र आएगा

इनकी मजबूरियों से बाहर इन्हें

हम कभी नहीं देखते

इसलिए हमें ये सब हमेशा

एक रचे रचाए कहानी के पात्र नज़र आते हैं

मेरी चाहत

मेरे महबूब

क्या ख़ता हुयी मुझसे , जो 

चाहतों पे मेरे

तुमने बंदिशें लगा दी 

हमने तो चाहा ना था

कि चाहें तुम्हें , पर

तुम्हारी नज़रों ने 

ये खता करायी

जब चाहा तुम्हें

चाहत से बढ़कर

गुरूर तुमको भी हुआ

तुम्हारे हुस्न पर

और जब दिल पे काबू ना रहा 

तुमने दायरे बना दिए

दायरों में सिमट कर

चाहत मेरी मरने लगी है

और अब तो ये आलम है, कि

मेरी सोच भी

चाहत से डरने लगी है

मेरी ज़िन्दगी

मेरी ज़िन्दगी

मुझको ये बता दे

मेरी मंजिल कहाँ है

मुझे उसका पता दे

रास्ते खुद बना लूँगा मैं

बस मेरी झिझक को हटा दे

हर बाधा पार कर सकूँ मैं

मन में इतनी शक्ति जगा दे

अपनी इस जिजीविषा को पा सकूँ

तू मेरा हौसला बढ़ा दे

और अगर फिर भी

जो ना पा सकूं अपनी मंजिल को मैं

मेरे अस्तित्व को मिटा दे

दुल्हन


नैनों में अंसुवन के मोती लिए 
दुल्हन डोली चढ़ने जा रही 
जिस आँगन में खेली दिन रात
उस आँगन की याद सता रही 
कलपती सिसकती गोरी 
अपनों के गले मिलती जा रही 
जाने फिर कब आना हो देश बाबुल का 
यही सोच सोच बिलखती जा रही  
........
जिस आँगन में देखे वसंत सारे
वो आँगन पीछे छुटी जा रही 
इक्कट दुक्कट खेला जिन सखियों संग 
वो सखियाँ बिछड़ी जा रही 
माखन चाचा बृंदा मौसी चंपा चमेली 
सब रहे गए गाँव में ... हम कहाँ जा रही 
जाने फिर कब आना हो देश बाबुल का 
यही सोच सोच बिलखती जा रही  
.......
बाबूजी के काँधे पर मेला देखा 
माई ने गृहस्थी सिखाई 
भाई बहन संग अम्बिया चुरायी 
अब सब की याद सता रही 
सब का आशीष लिए बैठी डोली में 
रुंधे गले से सबको समझा रही 
जाने फिर कब आना हो देश बाबुल का 
यही सोच सोच बिलखती जा रही  
    

दुल्हन की डोली


नैनन में अंसुवन की मोतियन लिए 
दुलहन डोली चढ़त जात है 
बाबुल के अंगनन में खेलत दिन रात 
उन घडियन की याद सतात है 
कलपत है ...सिसकत है
अपनन से गोरी मिलत जात है 
जाने कब आना हो देश बाबुल का 
यही सोंच सोंच  बिलखात है 
.............
जिस आँगन में देखे बसंत सारे 
वही आँगन अब पीछे रहत जात है  
इक्कट दुक्कट खेलीन जिन सखियन संग 
सारी सखियन भी छुटत जात है 
माखन चाचा बृंदा मौसी चंपा चमेली 
रह गए सब गांवन में ...हम चलत जात है  
जाने कब आना हो देश बाबुल का 
यही सोंच सोंच  बिलखात है 
.............
बाबूजी के काँधे पे मेला देखिन 
औ माई ने गृहस्थी सिखाई  
भाई बहिन संग खेली कितना  
अब सब की याद सतात है 
सब के आशीष लिए बैठी डोली में
रोये रोये मन उखड़त जात है  
जाने कब आना हो देश बाबुल का 
यही सोंच सोंच  बिलखात है 

नज़रिया



कभी इस दुनिया को 

औरों की नज़र से देखो 

तो कुछ और रंग नज़र आयेंगे 

दुनिया की कोई और तस्वीर नज़र आएगी 

खुशियों की परिभाषा बदल जाएगी 

ग़म के कारण बदल जायेंगे 

जिस बात से कभी कोई ताल्लुक नहीं था 

वो बात खास नज़र आएगी 

हम बस चश्मा लगाकर 

अपनी धुंधली नज़र को साफ़ कर लेते हैं 

पर ये नहीं जानते कि 

इनसे हमारे नज़रिए नहीं बदलते हैं 

बस देखने का जरिया बदल लो 

दुनिया बदल जाएगी 

तू माँ है

तू माँ है 

तू जननी है 

तू सृष्टि का आधार है 

तू है तो हम हैं 

ये ज़िन्दगी 

तेरा आभार है 

मेरा संस्कार

तेरा प्यार है

तेरी ममता

मेरा संसार है

तेरी सूरत में

मेरा ईश्वर है

तेरे चरणों में

मेरा तीरथ है

मैं हर जनम 

ऋणी हूँगा तेरा

हर जनम

तेरा उपकार है

तुम बहुत खूबसूरत हो

आज तुम नहीं थे मेरे पास 

तुम्हारी याद मुझे बहुत सता रही थी 

मैंने बटुए से तुम्हारी तस्वीर निकाली 

घंटों निहारता रहा उसे 

आज कितने दिनों बाद 

तुम्हारी तस्वीर देखने का मौका मिला 

तुम कितनी खूबसूरत हो 

साथ रहते रहते 

मैं ये शायद भूल गया था 

तुम्हें सामने देखते देखते 

मेरी आँखें 

जैसे अभ्यस्त सी हो गयीं थीं 

तुम्हारे चेहरे से 

रोज़ की आपा धापी में 

तुम्हारी खूबसूरती को 

निहारने का कभी वक्त ही नहीं मिला 

आज जब तुम पास नहीं हो 

तो मुझे ये अनायास ही बोध हुआ 

तुम सच में बहुत खूबसूरत हो


तुम्हारा दर्द





जिस दर्द का ज़िक्र तुम अक्सर कविताओं में करती हो 

कल उस दर्द से मेरी मुलाक़ात हुयी 

पर मैं उसको कुछ कह न पाया 

तुमने अपने सीने में उसे बांध जो रखा था 

कभी उसे अपनी क़ैद से मुक्त करो 

तो उसको मैं बताऊँ 

कि ए दर्द तू कहाँ आ फंसा है 

ये तो मेरी कविताओं में बसने वाली तितली है 

तू क्यूँ खामखाह उसके कब्ज़े में कसा है 

जा जाकर कोई ऐसा ढूंढ ले जिसे दर्द की चाहत हो 

जो तुझको चाहे 

तेरी इबादत करे 

मेरी तितली ने तुझको कभी नहीं चाहा

खामख्वाह इस को तू अब परेशां मत कर 

लौट कर तू उसके सीने में मत जा 

कोई और ना मिले तो मेरे पास आ 

मैं दूंगा पनाह तुझको 

पर मेरी तितली को अब तू कभी परेशां मत कर 

इसलिए कहता हूँ तुमसे 

तुमने अपने सीने में जो दर्द छुपा रखा है 

कभी उसे अपनी क़ैद से मुक्त करो 



हमारी परियां

याद है जब हम तुम साथ चले थे

सपनों की मंज़िल की ओर 

कितने सपने कितने अरमान 

इन आँखों में सजाये थे 

फिर कहीं से दो नन्हीं परियाँ 

मखमल से पंख लगा कर 

हमारे सपनों को लेकर उड़ चलीं 

उनकी उड़ान से बेखबर हम 

नन्हीं परियों को बढ़ता देख

अनजान रहे 

न जाने कब 

हमारी दो नन्हीं परियों ने उड़ते उड़ते 

नया आसमान नयी मंज़िल 

नयी दिशाएँ ढूंढ लीं 

अपने आसमान में उड़ने का सुख 

उनको मिला तो 

नए जोश और नयी उमंग से 

एक नयी उड़ान पर निकल पड़ीं 

उड़ते उड़ते सपनों की दुनिया से 

उन दोनों के सपनों का राजकुमार 

अनगिनत खुशियों के खजाने संग 

उनसे आकर मिला 

उनसे मिलकर 

दोनों परियाँ 

अपनी अपनी दुनियाँ बसाने को 

एक नयी उड़ान पर निकल पड़ीं 

हम तुम जैसे साथ चले थे 

फिर उन राहों पर अकेले रह गए 

अपनी दुनिया अपनी मंज़िल 

अपने आप में समेटे हुये 

रात दिन अपनी परियों की 

अपने आसमान में राह तकते हुये 

काश कि वो उड़ते उड़ते एक बार फिर 

हमारे आँगन में उतर आयें 

हम जी भर के देख लें उनको 

फिर चाहे वो उड़ जाएँ