तुम कहते हो
रिश्ते बदल जाते हैं
मैं कहता हूँ
रिश्ते नहीं
हम बदल जाते हैं
रिश्तों का क्या है
वो तो हम बनाते हैं
रिश्तों को तो मालूम भी नहीं
हम उनसे क्या चाहते हैं
वो तो बस हम से
बन जाते हैं
फिर हम उन पर
ना जाने
क्या क्या ज़ुल्म ढाते हैं
कभी ये भी नहीं देख पाते हैं
कि आखिर
ये रिश्ते हमसे क्या चाहते हैं
अपेक्षाओं और चाहतों का
सिलसिला
या फिर उनके आँगन में
हँसता मुस्कुराता
कोई फूल खिला
हम बस अपनी ही
करते चले जाते हैं
रिश्तों पर क्या बीती
यह देख नहीं पाते हैं
फिर इन्हीं पे
ये इलज़ाम लगाते हैं
जाने क्यूँ
ये रिश्ते बदल जाते हैं
रिश्ते बदल जाते हैं
मैं कहता हूँ
रिश्ते नहीं
हम बदल जाते हैं
रिश्तों का क्या है
वो तो हम बनाते हैं
रिश्तों को तो मालूम भी नहीं
हम उनसे क्या चाहते हैं
वो तो बस हम से
बन जाते हैं
फिर हम उन पर
ना जाने
क्या क्या ज़ुल्म ढाते हैं
कभी ये भी नहीं देख पाते हैं
कि आखिर
ये रिश्ते हमसे क्या चाहते हैं
अपेक्षाओं और चाहतों का
सिलसिला
या फिर उनके आँगन में
हँसता मुस्कुराता
कोई फूल खिला
हम बस अपनी ही
करते चले जाते हैं
रिश्तों पर क्या बीती
यह देख नहीं पाते हैं
फिर इन्हीं पे
ये इलज़ाम लगाते हैं
जाने क्यूँ
ये रिश्ते बदल जाते हैं
हकीकत .....
ReplyDeleteहर पल जिंदगी में बदलता है आदमी
और कहता है जिंदगी बदल गयी है....