Tuesday 11 September 2012

गुजरते लम्हे

गुजरते वक्त की मानिंद
हम भी गुजर गए उन राहों से
जिन राहों पर उनकी रहगुज़र थी
वो राह तकते रहे
हम राह भटकते रहे
किसी ठहरे हुए लम्हे पर
उनके क़दमों के निशां मिले
पर वक्त बेरहम था
ठहरा नहीं
गुजर गया
जाते वक्त के साथ
उनके क़दमों के निशां भी मिट गए
वो उस ठहरे हुए लम्हे के साथ बह गए
वक्त की रफ़्तार में
अब हम हैं और हमारी तन्हाइयां 

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