जाने क्यूँ
अक्सर मैंने
जाने अनजाने
आहत किया है
तुम्हारा नाजुक मन
तुमने तो सौंपा था मुझको
अपना तन मन
किया था जब
पूर्ण समर्पण
पर मैं समझ नहीं पाया
तुम्हारा अंतर्मन
तुम्हारे मन की व्यथा
तुम्हारे मन की कथा
जो तुम कहना चाहती थी
हरदम मुझसे
पर मैं अनजान रहा उनसे
कुछ अहम् मेरा
कुछ तुम्हारी नादानियाँ
कुछ उम्मीदें मेरी
कुछ तुम्हारी नाफरमानियाँ
कुछ वक़्त की बंदिशें
कुछ मेरी लापरवाहियाँ
कुछ तुम्हारा भोलापन
कुछ मेरी बेपरवाहियाँ
आज तुमको यूँ उदास देखा
तो मेरा जी भर आया
तुमने अपनी हर ख़ुशी
मेरी ख़ुशी के लिए गंवाया
और मैं हूँ कि
तुमको समझ ही नहीं पाया
मेरी ज़िन्दगी हो तुम
मेरी ज़िन्दगी तुमसे है
अब कोई गम कभी तुमको
भूल कर भी छू नहीं पायेगा
खुशियाँ ही खुशियाँ होंगी
हर तरफ
वक़्त भी मुस्कुराएगा
अक्सर मैंने
जाने अनजाने
आहत किया है
तुम्हारा नाजुक मन
तुमने तो सौंपा था मुझको
अपना तन मन
किया था जब
पूर्ण समर्पण
पर मैं समझ नहीं पाया
तुम्हारा अंतर्मन
तुम्हारे मन की व्यथा
तुम्हारे मन की कथा
जो तुम कहना चाहती थी
हरदम मुझसे
पर मैं अनजान रहा उनसे
कुछ अहम् मेरा
कुछ तुम्हारी नादानियाँ
कुछ उम्मीदें मेरी
कुछ तुम्हारी नाफरमानियाँ
कुछ वक़्त की बंदिशें
कुछ मेरी लापरवाहियाँ
कुछ तुम्हारा भोलापन
कुछ मेरी बेपरवाहियाँ
आज तुमको यूँ उदास देखा
तो मेरा जी भर आया
तुमने अपनी हर ख़ुशी
मेरी ख़ुशी के लिए गंवाया
और मैं हूँ कि
तुमको समझ ही नहीं पाया
मेरी ज़िन्दगी हो तुम
मेरी ज़िन्दगी तुमसे है
अब कोई गम कभी तुमको
भूल कर भी छू नहीं पायेगा
खुशियाँ ही खुशियाँ होंगी
हर तरफ
वक़्त भी मुस्कुराएगा
बहुत सुन्दर प्रशांत जी.....
ReplyDeleteसारे ज़ख्म भर गए..........
बेहतरीन रचना...
अनु