मोहब्बत में तो
इम्तेहां होते हैं
फिर जाने क्यों लोग
परेशां होते हैं
क्या हुआ जो
रातों की नींद गयी तो
या फिर तीर-ए-नज़र
सीने को बींध गयी तो
क्या हुआ जो
सदियों का इंतज़ार रहा तो
या फिर उनसे मिलने को
दिल बेकरार रहा तो
क्या हुआ जो
आंसुओं की धार बही तो
या फिर उनके दिल में
तुम सा प्यार नहीं तो
क्या हुआ जो
उनके लिये भटके दर दर
या फिर बिरहा की रात
बितायी मर मर
क्यूँ नहीं जानते
वो जो मोहब्बत करते है
कि मोहब्बत में तो
सिर्फ इम्तेहां होते हैं
फिर भी जाने लोग
क्यों परेशां होते हैं
इम्तेहां होते हैं
फिर जाने क्यों लोग
परेशां होते हैं
क्या हुआ जो
रातों की नींद गयी तो
या फिर तीर-ए-नज़र
सीने को बींध गयी तो
क्या हुआ जो
सदियों का इंतज़ार रहा तो
या फिर उनसे मिलने को
दिल बेकरार रहा तो
क्या हुआ जो
आंसुओं की धार बही तो
या फिर उनके दिल में
तुम सा प्यार नहीं तो
क्या हुआ जो
उनके लिये भटके दर दर
या फिर बिरहा की रात
बितायी मर मर
क्यूँ नहीं जानते
वो जो मोहब्बत करते है
कि मोहब्बत में तो
सिर्फ इम्तेहां होते हैं
फिर भी जाने लोग
क्यों परेशां होते हैं
जाने क्यूँ लोग मोहब्बत किया करते हैं.....दिलके बदले दर्द ए दिल लिया करते हैं ........
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