Friday 20 July 2012

मयकदे से ....

आँखों से जो तेरी पी थी 
अभी तक हूँ उस नशे में 
क्या करूँ मयख़ाने जाकर 
वो मज़ा नहीं मयकदे में

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प्यास ज़िन्दगी भर की 
एक प्याले में समा गयी 
हमने आँखों से पीना चाहा 
वो हमें जाम थमा गयी 

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वीराना हो या मयखाना 
मकसद तो है तुझे पाना 
जो तू मिल जाये वीराने को मयखाना बना दूं
नहीं तो शहर के सारे मयखाने जला दूं 

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मयकदा तो बहाना है
ग़म हो तो ग़म मिटाना है 
खुशियाँ भी मनाना है
पर मकसद तो एक ही है 
वहाँ बस पीना पिलाना है




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