Sunday 22 July 2012

संवादहीनता

 
इतनी घनिष्ठता ---

फिर अचानक 

ये संवादहीनता ---

क्या ये वही दो इंसान हैं 

ना जाने क्यों हैरान हैं 

किसी अनकही बात पर 

परेशान हैं 

अहम् का टकराव 

या 

विश्वास का बिखराव 

या फिर 

भावनाओं का ठहराव 

क्या है ये 

दोनों समझ नहीं पा रहे हैं 

और यूँ ही 

उलझन में जिए जा रहे हैं 

क्यूँ नहीं करता 

पहल कोई एक 

दोनों तड़प रहे हैं 

एक दूसरे को देख 

या तो रिश्ते बनाते नहीं 

बनाया अगर फिर  

क्यूँ निभाते नहीं 

बस इसी द्वन्द में 

कट जाएगी ज़िन्दगी 

जंग लग जाएगी चाहतों को 

सीलने लगेगी ज़िन्दगी 

होश इन्हें जब आएगा 

दूर जा चुके होंगे कहीं 

इस से बेहतर है  

मौन तोड़ दो अभी यहीं 

करो संवाद तुम फिर से 

मिटा दो सारे गिले दिल से 

छोटी सी ये जिंदगी है 

भर लो इसको खुशियों से  










1 comment:

  1. बेहद खूबसूरत रचना,कोमल सी ....किन्तु मजबूती से रिश्तों से अहम् की परतों को हटाती.....ख़ामोशी को तोड़ती....स्नेह से बांधती....

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