Saturday 21 July 2012

उसकी आँखें

उसकी झील सी गहरी आँखें

प्रिय थे मुझे

मैं अक्सर उन्हें देखता

जब भी वो अपने छत की मुंडेर पे बैठ

अपलक निहारती क्षितिज को

जैसे कितने ख्वाब संजोये हों

सांझ के सिन्दूरी आसमां से

धरती की मांग भरने को

शायद इसलिए

अपलक निहारती वो

उस जगह को

जहाँ आसमां मिलता गले

अपनी धरती को

उसके निस्तेज़ चेहरे पर

इन आँखों के सिवा

मुझे कुछ और नज़र नहीं आता

उसकी दो आँखें

रात के अँधेरे में

दो जलते दीयों का आभास देतीं

या फिर यूँ लगता

दो कमल खिले हों

किसी ठहरे हुए झील के बीचो बीच

ना कोई हवा का झोंका

ना कोई सरसराहट

सब कुछ जैसे निस्तब्ध

और उसका यूँ अपलक निहारना

क्षितिज को

दिल में एक उत्कंठा जगाती

उसके नज़रों का

समानांतर ढूँढने की

जहाँ मैं स्थापित कर सकूं

अपनी छवि

उस क्षितिज की धरातल पर

और तब देखूं

उसकी स्थिर पुतलियों को नाचते हुए

अपने और क्षितिज के बीच

और आनंदित होऊं

उसकी पुतलियों के नर्तन से

कि विचलित कर दी मैंने

उसके मग्न ध्यान को

पर ऐसा कुछ नहीं हुआ

वो अपलक निहारती रही

क्षितिज को

और देखती रही

अपने आसमां को

धरती से मिलते हुए

उस दिन वो नहीं आई

मन विचलित हो उठा

फिर कई दिन गुज़र गए

पर वो नहीं आई

मन उत्सुक था जानने को

क्या हुआ

अब वो क्यूँ नहीं आती

क्यूँ नहीं निहारती अपलक

क्षितिज को

पर कुछ खबर नहीं

कई दिन बीत गए

वो नहीं आई

बीतते समय के साथ

वो मेरे अतीत से घुल मिल गयी

बाद बरसों के

उस गली में फिर जाना हुआ

जहाँ का कण कण था

पहचाना हुआ

आँखें बरबस ढूँढने लगीं

उन झील सी गहरी आँखों को

जिसने रंगा था

मेरे अनछुए कुंवारे सपनों को

मैं डूबा था इन ख्यालों में

कि कानों ने कुछ ऐसा सुना

साँसे थम गयीं

धड़कन सहम गयीं

मैं बुत बना ठगा सुनता रहा

जिन आँखों में

मैं डूबा रहता था

जिन आँखों की

मैं पूजा करता था

वो अब किसी और की दुनिया

रोशन करती है

काल का ग्रास बनने से पहले

अपनी आँखें छोड़ गयी वो

एक अँधेरी ज़िन्दगी में

रौशनी की खिड़की खोल गयी वो

ना जाने करोड़ों चेहरों में

उसकी आँखें कौन सी हो

मैं अब भी ढूंढता फिरता हूँ

उन अनजाने चेहरों में

उसकी उन प्यारी आँखों को

उनमें बसे उन ख़्वाबों को

जो शायद

अब पूरे हो ना सकेंगे

और शूल बन मुझको

जीवन भर डसेंगे





2 comments:

  1. आँख मूँद कर चल देना
    सपनो का देश घूमने............ बहुत खूब !!

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  2. कहते हैं आँखें मन का दर्पण होती हैं...... बहुत कुछ कह जाती हैं, बिना शब्द !! रचना बड़ी सुन्दर बन पड़ी है... बड़ी भावपूर्ण और एक-एक शब्द जैसे मोती के भाव गुंथे से.... बधाई !

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