इन झुर्रियों के पीछे
इक परछाईं है
उन लाशों की
जिन्हें वर्षों पहले
जिंदा दफना दिया
ज़ुल्म के ठेकेदारों ने
गुलामी के बाज़ारों में
वादे इनसे ज़िन्दगी के किये
हथेलियों पे जलाये इनके
मौत के दीये
कोई रास्ता नहीं था
इनके लिए
क्षुधा की आग बुझाने को
कफ़न गुलामी का ओढ़ लिए
जवानी अपनी राख कर दी
भविष्य के सुख के लिए
जब जीवन ही ना रहा
फिर ये सुख किस के लिए
अब ये लाशों को ढो रहे हैं
पल भर को जीने के लिए
शायद कोई अमृत ला दे
इन लाशों के पीने के लिए
आतुर हैं जीवन पाने को
बस एक ही आस में
असली मौत ये मर सकें
मोक्ष की तलाश में
दिल को छु लेनेवाले भाव...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
बेहतरीन रचना ...तस्वीर बहुत कुछ कह रही है !