Tuesday 17 July 2012

मोक्ष की तलाश में


इन झुर्रियों के पीछे

इक परछाईं है

उन लाशों की

जिन्हें वर्षों पहले

जिंदा दफना दिया

ज़ुल्म के ठेकेदारों ने

गुलामी के बाज़ारों में

वादे इनसे ज़िन्दगी के किये

हथेलियों पे जलाये इनके 

मौत के दीये

कोई रास्ता नहीं था

इनके लिए 

क्षुधा की आग बुझाने को

कफ़न गुलामी का ओढ़ लिए

जवानी अपनी राख कर दी

भविष्य के सुख के लिए

जब जीवन ही ना रहा

फिर ये सुख किस के लिए

अब ये लाशों को ढो रहे हैं

पल भर को जीने के लिए

शायद कोई अमृत ला दे

इन लाशों के पीने के लिए

आतुर हैं जीवन पाने को

बस एक ही आस में

असली मौत ये मर सकें

मोक्ष की तलाश में




1 comment:

  1. दिल को छु लेनेवाले भाव...
    बहुत सुन्दर...
    बेहतरीन रचना ...तस्वीर बहुत कुछ कह रही है !

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