Sunday 22 July 2012

अपेक्षा

ना जाने क्यों

हर रिश्ते में

प्यार की बहती धारा पर 

हम अपेक्षाओं का बाँध बना देते हैं 

फिर रिश्ते सिमट कर रह जाते हैं 

बाँध के उस ओर 

और हम रह जाते हैं 

रिश्तों के गीलेपन से अछूते 

उसके इस ओर 

कभी जब सैलाब आता है 

बहा ले जाता है सब कुछ 

टूटे हुए रिश्ते 

और 

अपेक्षाओं का ढेर 

रह जाते हैं 

बस 

पश्चाताप और ग्लानि 

और उसकी आग में जलते 

हम ....

3 comments:

  1. सचमुच ही अपेक्षाएं किसी भी सम्बन्ध को धीमी मृत्यु की कगार पर ले जाती हैं.... आपने शब्दशः सही कहा और बड़ी खूबसूरती से कहा !! ढेरों शुभकामनाएँ !!!

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  2. कितना सुन्दर लिखते है आप ...वाकई बेहतरीन ...ढेरों हार्दिक शुभकामनाएँ...../

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