Wednesday 25 July 2012

कुंठा

कुंठित क्यूँ होती है

हमारी मानसिकता

ईश्वर ने जो रच कर दिया

मानस पटल

वो किंचन था

निर्मल था

पर उसमें हमने बो दिया

अपनी संकीर्णता का ज़हर

और फिर हमारी कलुषित सोच से

सिंचित होकर

वो फल फूल कर

बन गया

कुंठित काँटों की फसल

अब

उस फसल को खाते हैं हम

और फिर

कुंठित कहलाते हैं हम

क्यूँ नहीं फिर

हम गीले कच्चे मानस पटल पर

अच्छी सोच को बोते हैं

जब हम बच्चे होते हैं

कितने सच्चे होते हैं

फिर क्यूँ नहीं वही सच्चाई

हम जीवन भर ढोते हैं

काश अगर ऐसा हो जाए

तो कभी मानस पटल पर

कुंठा की फसल उग ना पाए

सोच हमारी फिर संकीर्ण ना हो

और

कुंठित हम न कहलाये



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