Saturday 21 July 2012

रात के हमसफ़र

रात मचलती रही

चाँद को बाहों में लेने के लिए

चाँद भी आतुर था

रात के आँचल में छुपने के लिए

बादलों को जाने किसने

किस्सा सारा बतला दिया

चांदनी से मिलकर उसने

चाँद को छुपा दिया

रात मचलती रही

चाँद को बाहों में लेने के लिए

हवाओं से देखा ना गया

रात का यूँ मचलना

चाँद से मिलने के लिए

हवा का एक नर्म झोंका

बादलों को हटा दिया

रात ने बाहें फैलाकर

चाँद को

आगोश में अपने छुपा लिया

चांदनी छुपती रही

चाँद भी शरमा गया

चाँद अब आसमां में

जब भी निकल कर आता है

बादलों के ओट से

रात को बुलाता है

रात के जाते ही फिर

चाँद कहीं छुप जाता है





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