Wednesday 25 July 2012

नफरत

नफरत ---

क्यूँ करते हैं हम किसी से

वो जो दिल के इतने करीब होते हैं

क्यूँ अचानक

दूर हो जाते हैं

हमारी चाहतों से

शायद हमारी उम्मीदें

भारी पड़ जाती हैं

हमारी चाहतों पे

उम्मीदों का ये सिलसिला

ना जाने कहाँ से

शुरू हो जाता है

चाहतों के  जन्म लेते ही

फिर हम

अपनी चाहत को

इन्हीं उम्मीदों की कसौटी पर

परखते हैं

जब तक हमारी चाहत

उम्मीद की कसौटी पर

खरा उतरता है

इन उम्मीदों का ज़हर

असर नहीं दिखा पाता

और हमारी चाहतें

फलती फूलती रहती हैं

पर जिस पल

उम्मीदों का काला साया

चाहतों पे मंडराया

बस वहीँ पर

चाहत दम तोड़ देती है

और जन्म लेती है

नफरत

क्यूँ हम चाहतों पे

उम्मीदों का बोझ ढोते हैं

पाते नहीं हैं कुछ भी

बस

मन का चैन खोते हैं

चाहतों को

उम्मीद से बस

वहीँ तक जुड़ने दो

जहां चाहतें छटपटा ना पायें

चाहत की राह में

वापस मुड़ने को

ऐसा कर लिया अगर

चाहतें मुस्कुरायेंगी

और

नफरत

कभी जन्म नहीं ले पाएगी




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