Thursday 19 July 2012

धान के खेत

धान के खेत 

बचपन से मुझे लुभाते हैं 

आज भी जब 

मैं इन्हें देखता हूँ 

ये मुझे 

बचपन की याद दिलाते हैं 

बारिशों के आते ही 

जुते हुए खेतों में 

पानी का भर जाना 

और फिर घर में 

किसी पर्व सा

खुशियाँ मनाना 

वो यादें 

आज भी मुझे हरसाते हैं 

औरतों की टोलियाँ 

धान के पौधों का गट्ठर लिए 

टखने भर पानी में 

झुक झुक कर पौधों को 

मिटटी के हवाले करते हुए 

खुशियों के गीत गाती थीं 

झूम झूम कर हवाएं 

उनके सुर में सुर मिलाती थीं 

बारिश भी 

इन खुशियों में शामिल होने 

दूर कहीं से आती थी 

दिन दिन भर हम बाट जोहते 

मौका मिलते धान रोपते 

फिर अपने पौधों को 

दिखा दिखा कर ताल ठोकते 

जब तक रोपा चलता था 

दिल और कहीं ना लगता था 

आज भी राह में कहीं अगर 

मिल जाए मुझे वही डगर 

मैं फिर उन्हीं यादों में खो जाता हूँ 

और मन ही में धान बो जाता हूँ









2 comments:

  1. पुरानी मधुस्म्रतियों में ले गई, आपकी बेहद खूबसूरत मासूम सी रचना...

    सादर

    ReplyDelete
  2. खेत-खलिहान, धान-रोपाई......... वो बचपन की स्मृतियाँ फिर लौट आयीं !!! आपके शब्द जादुई हैं, जो पल भर में उनके हो जाते है - जो उन्हें पढ़ते हैं !!! बहुत सुन्दर.. बधाई और शुभकामनाएँ

    ReplyDelete