बचपन से मुझे लुभाते हैं
आज भी जब
मैं इन्हें देखता हूँ
ये मुझे
बचपन की याद दिलाते हैं
बारिशों के आते ही
जुते हुए खेतों में
पानी का भर जाना
और फिर घर में
किसी पर्व सा
खुशियाँ मनाना
वो यादें
आज भी मुझे हरसाते हैं
औरतों की टोलियाँ
धान के पौधों का गट्ठर लिए
टखने भर पानी में
झुक झुक कर पौधों को
मिटटी के हवाले करते हुए
खुशियों के गीत गाती थीं
झूम झूम कर हवाएं
उनके सुर में सुर मिलाती थीं
बारिश भी
इन खुशियों में शामिल होने
दूर कहीं से आती थी
दिन दिन भर हम बाट जोहते
मौका मिलते धान रोपते
फिर अपने पौधों को
दिखा दिखा कर ताल ठोकते
जब तक रोपा चलता था
दिल और कहीं ना लगता था
आज भी राह में कहीं अगर
मिल जाए मुझे वही डगर
मैं फिर उन्हीं यादों में खो जाता हूँ
और मन ही में धान बो जाता हूँ
पुरानी मधुस्म्रतियों में ले गई, आपकी बेहद खूबसूरत मासूम सी रचना...
ReplyDeleteसादर
खेत-खलिहान, धान-रोपाई......... वो बचपन की स्मृतियाँ फिर लौट आयीं !!! आपके शब्द जादुई हैं, जो पल भर में उनके हो जाते है - जो उन्हें पढ़ते हैं !!! बहुत सुन्दर.. बधाई और शुभकामनाएँ
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