Sunday 1 July 2012

कुछ ख्याल.....दिल से (भाग - १)

बड़ी शिद्दत से चाहा था दो पल तेरे साथ
देखो खुदा ने पूरी उम्र ही बक्श दी हमें

कौन छीन ले गया सबर-औ -क़रार तेरा
बेक़रार हो तू कभी ऐसा तेरा दिल ना था

शब्द तो हम बनाते हैं अक्षरों को जोड़ कर
अर्थ कुछ भी निकाल लो तुम उनको तोड़कर

इंतज़ार उनका तू क्यों करता है दिल
वो तो किसी और के मेहमाँ बने बैठे हैं

जब दिल तुझको सबसे ज्यादा खोजता है
तू मुझसे बहुत दूर कहीं हुआ करता है 

ये अश्क़ आँखों में क्यों नहीं थमते
क्यों बताएं उन्हें की हम गमज़दा हैं

चाहतें हमारे काबू में कहाँ होती हैं
ये तो ग़ैरों की होकर हमें तड़पाती है

अच्छी थी दुश्मनी अपनी हुस्न-ए-जाना
दोस्ती कर इश्क तेरे हुस्न से हो गया

मेरे इश्क से तेरे हुस्न पे नूर है
मेरा इश्क नहीं तो तेरा हुस्न बे-नूर है

मुश्किल अगर ऐसे मिलने में है
तो ख़्वाबों में आकर मिल जाओ ना

काफ़िर कह कर मेरी इबादत का मज़ाक ना उड़ा
सज़दे में हमने तुझे हमेशा अपना खुदा माना

खुदा तो बस खुदा होता है
क्या सज़दा क्या इबादत क्या मोहब्बत

कोई और खुदा कैसे बनाऊँ
मैंने तो बस तुझको खुदा माना है

No comments:

Post a Comment