आह
ज़मीन का वो टुकड़ा
कभी फसलों से लहलहाता था
मेरे मन को हुलसाता था
मेरे बचपन का हर इक पल
उस ज़मीन से होकर गुज़रा था
कितनी सारी यादों का
कितनी सारी बातों का
हिस्सा वो ज़मीन का टुकड़ा था
और फिर एक दिन
सब कुछ जैसे उजड गया
वो ज़मीन
हरियाली से बिछड गया
अब वहाँ ऊंची ऊंची इमारतें हैं
ज़माने की सारी अदावतें हैं
इमारतों की कतारें हैं
और कुछ नहीं बस
ईंट की दीवारें हैं
दम घुटता है
उस ज़मीन का
दबे दबे कंक्रीट के नीचे
सह रहा है फिर भी सब कुछ
बस अपने मन को भींचे
कहाँ वो लहलहाती हरियाली
और उनपर मंडराती
तितलियाँ मतवाली
अब ना वो हरियाली है
ना तितलियाँ मतवाली हैं
ना वो सांझ सवेरा है
ना ही फसलों का फेरा है
बस चारों तरफ अँधेरा है
चारों तरफ अँधेरा है ---
ज़मीन का वो टुकड़ा
कभी फसलों से लहलहाता था
मेरे मन को हुलसाता था
मेरे बचपन का हर इक पल
उस ज़मीन से होकर गुज़रा था
कितनी सारी यादों का
कितनी सारी बातों का
हिस्सा वो ज़मीन का टुकड़ा था
और फिर एक दिन
सब कुछ जैसे उजड गया
वो ज़मीन
हरियाली से बिछड गया
अब वहाँ ऊंची ऊंची इमारतें हैं
ज़माने की सारी अदावतें हैं
इमारतों की कतारें हैं
और कुछ नहीं बस
ईंट की दीवारें हैं
दम घुटता है
उस ज़मीन का
दबे दबे कंक्रीट के नीचे
सह रहा है फिर भी सब कुछ
बस अपने मन को भींचे
कहाँ वो लहलहाती हरियाली
और उनपर मंडराती
तितलियाँ मतवाली
अब ना वो हरियाली है
ना तितलियाँ मतवाली हैं
ना वो सांझ सवेरा है
ना ही फसलों का फेरा है
बस चारों तरफ अँधेरा है
चारों तरफ अँधेरा है ---
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