Wednesday 18 July 2012

बारिशों का मौसम

बारिशों का ये मौसम देख

मन उतावला हो उठा है

ख्याल मन में नाच रहे हैं 

कुछ बचकानी

कुछ मनमानी

कुछ रूमानी

बारिश को

जिन जिन रंगों में देखा है

ख्याल का ये नर्तन

उन्हीं रंगों का लेखा है

वो सारी बीती बातें

मन में पेंगें मार रहीं हैं

यादों को संवार रहीं हैं

बारिश के आते ही

बचपन गीली हो जाती थी

मन, कपड़े, जाने क्या क्या

माँ की झिड़की

घर की खिड़की

लू की तपन में सोते सोते

बारिश आते ही

जाग जाते थे

और हम सब बच्चे

घरों से अपने भाग जाते थे

बारिश की तालाब में

कागज़ की नाव खेते खेते

जाने कहाँ तक चले जाते थे

फिर आई वो बारिश

जागी जिस से मन में तपिश

अबोध मन थोड़ा विचलित हुआ 

इस अनुभूति से विस्मित हुआ 

पहले कभी ऐसा नहीं हुआ

शायद ऐसा ही होता होगा 

यही सोचकर रह गया

तब आया वो सावन 

मन में लगायी जिसने अगन

मन मयूर ने ली अंगड़ाई

पपीहे ने जब तान लगाई

नाचने लगे तन और मन

खिल उठा अल्हड़ यौवन

कमी किसी की खलने लगी

अनजानी सी चाहत छलने लगी

वो अचानक अच्छे लगने लगे

जिनसे हम पहले कभी नहीं मिले

बारिश से वो भींगी थी

ठंढी ठंढी गीली थी 

कोने में वो खड़ी थी

सिमटी और सिकुड़ी थी

बारिश अपने जोर पे थी

मेरी नज़र उस ओर ही थी

साँसें उसकी रुकी हुयी थी

नज़रें भी झुकी हुयी थी

तभी आया बारिश का झोंका

मैं अपनी तन्द्रा से चौंका

वो शर्म से झेंप रही थी

फर्श में नाखून घोंप रही थी

बारिश के थमते ही

वो ऐसे आँखों से ओझल हुयी

जैसे कभी वो थी ही नहीं

चेहरा उसका आज भी

मुझको कभी भुला नहीं

तब से तड़पाता है ये सावन

तन मन जलाता है ये सावन

जब भी बारिश आती है

संग अपने यादें लाती है

अपनी गीली गीली बूंदों से

मन को भिंगो कर जाती है

कभी बहुत हरसाती है

कभी बहुत तरसाती है

और यूँ ही

हर सावन

बारिश बरसती जाती है







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