Monday 2 July 2012

मेघा कहाँ अटके तुम


मेघा कहाँ अटके तुम

राह में कहाँ भटके तुम

हर तरफ अब त्राहि त्राहि है

अब बस तुम्हारी बारी है

ऐसे ना तरसाओ मेघा

जल्दी आकर बरसो मेघा

सूरज तपकर आग उगले

धरती का भी सीना उबले

नदी नाले ताल तलैया

सब सुख गए हैं भैया

मालूम है

तुम दूर देश से आते हो

रस्ते में सबको भिगाते हो

अब हमारी भी बारी है

भीगने की तैयारी है

तुम चुपके चुपके आओ ना

इन पागल हवाओं को बताओ ना

आकर गुप चुप बरस जाओ ना

नहीं तो फिर ये पागल हवा

तुमको उड़ा  ले जायेगी

और मेरी धरती फिर सुखी रह जाएगी





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