Monday 9 July 2012

मेरी वसीयत

मेरी अभिलाषा ---

कुछ सपने ---

मुट्ठी भर समय ---

थोड़ी सी आशा ---

इन सब की वसीयत करनी है मुझे

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अभिलाषा एक ऐसे संसार की ---

जो रचनात्मकता से भरा हो

सब की खुशहाली से हरा हो

उसमें दुःख भी चाहे ज़रा हो

पर कोई ना किसी से डरा हो

वो अभिलाषा मैं तुमको देता हूँ

और वादा तुमसे ये लेता हूँ

कि तुम ---

संसार एक ऐसा बनाओगी

उसमें सपने मेरे सजाओगी

मेरे सपने 

जो देखे थे मैंने अपने लिए

तुम्हारे साथ

ये ज़िन्दगी बिताने की

वो सपने भी मैं तुमको देता हूँ 

हम और तुम 

दुःख सुख दिन रात

साथ साथ

सब कुछ बाँटते हुये

दुखों के बादल छांटते हुए

सुखों का सूरज लायेंगे 

और फिर इन घड़ियों में से

मुट्ठी भर समय चुराएंगे 

मुट्ठी में पकड़े उस समय को भी

मैं तुम्हे सौंपता हूँ

क्योंकि ---

इनमें सिमटी हुई खुशियों से

तुम्हें उन पलों को सजाना है

जब दुःख के घने बादल

खुशियों पे ग्रहण लगायेंगे

तुम्हारी हर कोशिश को विफल बनाएंगे 

पर तुम हताश मत होना 

कभी निराश मत होना 

क्योंकि तुम्हे वहाँ तक जाना है

जहां मेरी आशाओं का आशियाना है 

वो आशायें भी अब तुम्हारी हैं

पर वो सब अभी अधूरी हैं

तुम्हें करनी उनको पूरीं हैं

उन आशाओं में ---

मैंने इक दुनिया बनायी है 

और अपनी आशाएं सजायी है 

उन आशाओं में तुम्हे ---

नव-जीवन का सवेरा लाना है

दुखों का अँधेरा मिटाना है

एक ऐसा जहाँ बनाना है

जहां हर तरफ खुशियों का तराना है

पर उसको पाने के लिए

तुमको अभी बहुत दूर जाना है

विदा लेने से पहले

मैं ---

आज ये वसीयत तुमको करता हूँ

और तुमसे ये वादा लेता हूँ कि 

मेरी हर अधूरी ---

--- अभिलाषा

--- कुछ सपने

---मुट्ठी भर समय , और

--- थोड़ी सी आशा

तुम सब को अपनाओगी ---

और मुझको ---

मोक्ष दिलाओगी

1 comment:

  1. और मुझको ---

    मोक्ष दिलाओगी .....bahut sundar ..wasiyar lajwaab hai yah ..

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