Thursday 12 July 2012

नागफनी

ज़िन्दगी के इस रेगिस्तान में 

कितने प्रश्न 

नागफनी बन कर खड़े हैं 

हर पल हर घड़ी सबको 

जवाबों के लाले पड़े हैं 

कुछ जवाबों की कोपलें फूटी तो हैं 

मगर 

समय के इस चक्र में 

ज़िन्दगी ने 

प्रश्नों का ढर्रा बदल दिया है 

अब ज़िन्दगी 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न ही पूछ रही है 

जवाब 

हाँ या ना में मांग रही है 

दरअसल 

अब उसे भाव आवेश नहीं आता 

आपा धापी में 

यथार्थ से जो अब 

उसने जोड़ लिया है नाता 

इसलिए उसने 

प्रश्नों का ढर्रा बदल दिया है 

बदले हुए हालातों में 

नए ढर्रे को देख 

जवाब की कोपलें 

अब मुरझाने लगी हैं 

उन्हें भान ना था 

ज़िन्दगी 

इस तरह 

बिना बताये 

प्रश्नों का ढर्रा बदल देगी 

अब तो उन्हें फिर से 

नयी उर्जा के साथ 

नए ढर्रे में 

बन संवर कर खिलना होगा 

और 

नागफनी पे टंगे प्रश्नों का जवाब

हाँ या ना में देना होगा 

तभी ये प्रश्न सुलझेंगे 

ज़िन्दगी का रुख बदलेंगे 

फिर किसी मृग मरीचिका के 

भ्रम जाल में फंस कर 

कोई राही 

ज़िन्दगी के रेगिस्तान में 

प्रश्नों की नागफनी से 

उलझ नहीं पायेगा 

और वस्तुनिष्ठ प्रश्नों का जवाब 

हाँ या ना में देकर 

सरसब्ज़ तक पहुँच जाएगा 

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(वस्तुनिष्ठ - objective )

(सरसब्ज़ - oasis)



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