Tuesday 17 July 2012

दिल के फ़साने

वादे उन्होंने हमसे किये

निभाया कहीं और

फिर वादे भी वहीँ करते

'गर निभाना था कहीं और

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खुशियों के फ़साने छोटे थे

फिर आया ग़मों का दौर

खुशियाँ शायद परायीं थीं

अपना है ये ग़मों का दौर

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इश्क भी क्या बला है

इस पर चलता नहीं किसी का जोर

करते हैं फिर इश्क क्यूँ भला

'गर चलता नहीं किसी का जोर

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दिलों को जोड़ती है

चाहत की ये कैसी डोर

ठेस लगते ही

टूट जाती है ये डोर








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