वादे उन्होंने हमसे किये
निभाया कहीं और
फिर वादे भी वहीँ करते
'गर निभाना था कहीं और
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खुशियों के फ़साने छोटे थे
फिर आया ग़मों का दौर
खुशियाँ शायद परायीं थीं
अपना है ये ग़मों का दौर
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इश्क भी क्या बला है
इस पर चलता नहीं किसी का जोर
करते हैं फिर इश्क क्यूँ भला
'गर चलता नहीं किसी का जोर
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दिलों को जोड़ती है
चाहत की ये कैसी डोर
ठेस लगते ही
टूट जाती है ये डोर
निभाया कहीं और
फिर वादे भी वहीँ करते
'गर निभाना था कहीं और
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खुशियों के फ़साने छोटे थे
फिर आया ग़मों का दौर
खुशियाँ शायद परायीं थीं
अपना है ये ग़मों का दौर
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इश्क भी क्या बला है
इस पर चलता नहीं किसी का जोर
करते हैं फिर इश्क क्यूँ भला
'गर चलता नहीं किसी का जोर
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दिलों को जोड़ती है
चाहत की ये कैसी डोर
ठेस लगते ही
टूट जाती है ये डोर
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