Thursday 12 July 2012

मेरी प्रियतमा

मेरी प्रियतमा ---

जब तुम मेरे सपनों में

सज धज कर यूँ आती हो

जाने कितने सुर सजाती हो

अपने पायल की छम छम से

कमरधनी की रुन झुन से

कंगन के खन खन से

फिर बहने लगती है 

संगीत सरिता की झंकार

और स्पंदित हो उठते हैं

मन के वीणा के तार

संगीत के इस ताल में 

डूबता उतराता

भीगता रहता हूँ मैं

तुमसे मिलन की आस में

नींद में भी जागता रहता हूँ मैं

जाने कहाँ से लाऊँ तुमको

किस विध प्रिय मैं पाऊँ तुमको

सपनों में जो बसती हो तुम

वहीँ सजती और संवरती हो तुम

कभी अपना नगर बताओ ना 

वहां जाती कौन डगर बताओ ना

मैं तुमसे मिलने आऊँगा

तुम्हे संग अपने ले जाऊंगा

तुम द्वार सारे खोले रखना

हवाओं को भी बोले रखना

कहीं रुख अपना बदल ना दें

भेद मिलन का उगल ना दें

तुम अपना श्रृंगार सजाये रखना

मिलन की आस जगाये रखना

मेरी प्रियतमा 

अब तुम

सपनों से निकल कर

मेरी दुनिया में आ जाओगी 

चीर प्रतीक्षित है वो पल

मैं आस में हूँ उसके हर पल

आ जाओ ना प्रियतमा मेरी 

देखो मैं हूँ कितना बेकल

विकलता मेरी और बढ़ाओ ना

प्रियतमा मेरी 

मुझसे मिलने आ जाओ ना

बस तुम ---

मुझसे मिलने आ जाओ ना






2 comments:

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  2. ab aise bulayenge to aana hi padega aapki Priyatama ko ......bahut umda

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