- मेरी आहों का असर देख लेना
वो आयेंगे थामे ज़िगर देख लेना
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मोहब्बत पे है 'गर तुमको यकीं
लाख दीवारें हो जाएँ खड़ीं
तुम मिलोगे मुझको यहीं
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जो जीते हैं ज़िन्दगी जिंदादिली से
मिलती है उनको हर खुशियाँ ख़ुशी से
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अजनबी बनके शायद हम फिर से पास आ सकें
दूरियां बहुत ला दीं थीं कमबख्त मोहब्बत ने
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मुझसे बिछड़े ही थे कब तुम
जो मिलने की बात करते हो
‘गर यकीं है तुमको मेरी मोहब्बत पर
तो क्यूँ बिछड़ने की बात करते हो
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हमको उनसे है वफ़ा की उम्मीद
जो जानते नहीं वफ़ा क्या है चीज़
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हम भी जुबां रखते हैं
एक बार पूछो तो मुद्दा क्या है
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अपना कौन पराया कौन ये सब वक़्त के फेरे हैं
जब जी चाहा भुला दिया फिर बोले हम तेरे हैं
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ज़िन्दगी चलने का नाम है
रूकती नहीं ये कभी
बहते नदिया के धारों को
थमते देखा है कभी
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अहम् की इस कशमकश में
न तुम तुम रहे ना मैं मैं रहा
अब क्यूँ है ये कशमकश
जब ना तुम रहे ना मैं रहा
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कितना अटूट बंधन है ये
जिसको जीने में ...
ज़िन्दगी मायने खो देती है
और ...
सारी कायनात साथ हो लेती है
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जागीर नहीं वो तुम्हारी
जिसपर तुम राज करते हो
खुशियाँ तुम्हारे दामन में है
और तुम ग़मों पे नाज़ करते हो
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दर्द है नहीं तुम्हें
दर्द का गुमान होता है
अभी अभी दर्द से गुज़रे हो तुम
इसलिए एहसास तमाम होता है
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हरकतें वही करो जो दिल को नासाज़ न करे
बातें वो ही करो जो किसी को नाराज़ ना करे
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हसरतें जितनी थीं उससे ज्यादा पाया हमने
उनकी खिदमत का शुक्रिया चुकाया हमने
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यही इस दुनिया की सच्चाई है ...
कोई नहीं यहाँ अपना ...
बस हम और हमारी तन्हाई है
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जब जब हमने उम्मीदों को जगाया है
ख़ुशियाँ कम और ग़म ज्यादा पाया है
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आऊँगा मैं फिर तुम्हारे आसमां पर
अभी कुछ दस्तुर हैं निभाने
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ज़िन्दगी की खासियत यही है
ये ना रोके किसी के रूकती है
और ना आगे किसी के झुकती है
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मन में उमंग
हर्षित घर आँगन
प्रकाशित मेरा अंतर्मन
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ज़िन्दगी को समझना 'गर इतना आसां होता
तो ज़िन्दगी हर इंसान पे मेहरबां होता
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प्रणय का आमंत्रण स्वीकार करो
वो क्षण भर देगी अंगारों में शीतलता
मिलन की बेला का इंतज़ार करो
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झूठ सच के सारे फ़साने
प्यार के हैं सारे बहाने
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गर्मी की तपती दुपहरी ..या फिर
जाड़े की गरमाती अंगीठी ...
कुछ स्मृतियाँ कड़वी कुछ मीठी
समय का क्या जाने कोई क्या रुख है
पर दुःख के हर झोंके के पीछे आता हरदम सुख है
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खुद पे यकीं था पर दिल और कहीं था
जब दिल से बात हुई तो तू बस वहीँ था
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वो जो आँखें बिछाए बैठा है तुम्हारे इंतज़ार में
अपना सब कुछ लुटाया उसने तुम्हारे प्यार में
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गुज़रे हुए कल को इतिहास बना दो
आने वाले कल का एहसास जगा लो
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रिश्तों को पनपने दो
प्यार से इन्हें सींचने दो
इनकी शाखों पे खुशियाँ फूलेगी
खुशबू से इनके जीवन महकेगी
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दिल में उतारी है तस्वीर तुम्हारी
जब याद आती हो देख लिया करता हूँ तुमको
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दोस्त हम बने हैं
आपकी दोस्ती का शुक्रिया
आप सलामत रहें हमेशा
हम करते हैं यही दुआ
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तन्हाई में तनहा नहीं
भीड़ में अकेला हूँ
ये क्या हाल हुआ मेरा
मेरा वजूद मुझ सा नहीं
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मोहब्बत तो एक एहसास है
ना कोई दावा ना कोई वादा
बस चाहत की इक प्यास है
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अभी बहुत दूर नहीं गए वो दिन
दिल चाहता है उन्हें वापिस बुला लूं
अच्छे थे या बुरे पर बहुत अपने से थे वो दिन
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रात का तो अपना फ़साना है
सबके सुख दुःख को समेट कर
भोर के पास जाना है
वो ना हो तो कोई क्या करे
इसलिए रात को तो आना है
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कलम को चलने दीजे अपनी चाल
डायरी हो या फिर आपकी वाल
उसकी बेबाकी से क्या डरना
कुछ लिख भी गया तो क्या करना
उस पर क्यूँ थोपें हम अपना हाल
करने दीजे उसको अपना कमाल
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कैसा अटूट रिश्ता है ये
जो होकर भी नहीं दिखता है
पर एहसास इसका ऐसा है
जो इंसान जी कर ही सीखता है
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अक्सर हम अपराध बोध लिए जीते हैं
अमृत को भी ज़हर समझ कर पीते हैं
ज़िन्दगी जीने के इतने ढंग हो गए हैं
हमारी सोच इसलिए इतने तंग हो गए हैं
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आईने को क्यूँ दोष दें हम
अपने को ही देख लें हम
हमने जो मुखौटे ओढ़ें हैं
क्या उनके रूप थोड़ें हैं
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दरख्तों को फिकर होती है अपनी हर शाखों की
शाख कोई ज़ख़्मी हो जाए तो रोता है दरख़्त
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मन तो बावरा है
इसकी उड़ान अथाह है
ना कोई इसको पकड़ पाया है
ना किसी को इसकी थाह है
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फिर वही अहं की टकराहट
फिर कुछ गिले कुछ शिकवे
फिर रूठना मनाना शर्माना
फिर वापिस तुम्हारी मुस्कराहट
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ये ज़िद ही तो प्यार की हद है
ये ज़िद ना हो तो प्यार कहाँ है
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हम दम वो तेरा हम दम ना था
जो हम दम तेरा हम दम होता
ना ही तुम चाक जिगर करते
ना लगाने को मरहम होता
Friday, 20 July 2012
कुछ ख्याल .....दिल से (भाग - २)
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