Saturday 21 July 2012

सपनों का मेला

काश कहीं सपना बिकता

अपनी आँखों के लिए

सुनहरे वाले सपने लाता

कुछ दर्द भरे सपनों से बदल कर

खुशियों के सपने लाता

सपनों के उस मेले से

कुछ बचपन के सपने लाता

कुछ यौवन के सपने लाता

कुछ रंगों के सपने लाता

कुछ दीपों के सपने लाता

जीवन जिनसे रंग जाता

उजाला जीवन में भर जाता

ऐसे मैं सपने लाता

काश कहीं सपना बिकता

मैं अपने वाले सपने लाता 

3 comments:

  1. काश कहीं सपना बिकता, तो हम भी खरीद लाते उन सपनो को जो ये आंखे दिन रात देखती है ...बहुत सुन्दर प्रशांत जी ...!!

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  3. This is purely awesome! :) Lots and lots of love!

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