Thursday, 26 July 2012

मेरी अभिसारिका

तुम परी हो या अप्सरा 

मैं मुश्किल में हूँ ज़रा 

परियाँ तो ख़्वाबों में होती हैं 

अपसराएँ भी 

आकाश में होती हैं 

फिर कौन हो तुम 

कहाँ से आई हो 

थोड़ी सी सिमटी हुयी 

और 

थोड़ा सा शरमाई हो 

चाँद कहूं या सूरज तुमको 

फूल कहूं या तारे 

सारी उपमा फीकी पड़ गयी 

फीके पड़े नज़ारे 

क्या कहूं तुम कैसी हो 

मेरे सपनों जैसी हो 

चांदनी में नहाई हो 

दुल्हन सी शरमाई हो 

जैसे खुद से मिलकर 

खुद से ही लजाई हो 

पलकें ऐसे झुकी हुयी हैं 

पंखुड़ियों सी ढकी हुयी हैं 

तेरे अधर ऐसे लरजते हैं 

जैसे मुझसे मिलने को तरसते हैं 

तुम अपनी खुशबू से महकती हो 

माथे की बिंदिया से दमकती हो 

चाँद तुमसे घबराता है 

तेरे क़दमों की आहट सुन 

जाने कहाँ छुप जाता है 

तेरे कंगन की खन खन से 

सरगम जल जल जाती है 

तेरे पायल की रुन झुन से 

रागिनी भी शरमाती है

आकाश की अपसराएँ भी 

तुझसे मिलने आती हैं 

जाने अब क्या नाम दूं तुझको 

कैसी ये उलझन है मुझको 

परी कहूं या तारिका 

नहीं नहीं 

तू है 

मेरी अभिसारिका 











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