तुम परी हो या अप्सरा
मैं मुश्किल में हूँ ज़रा
परियाँ तो ख़्वाबों में होती हैं
अपसराएँ भी
आकाश में होती हैं
फिर कौन हो तुम
कहाँ से आई हो
थोड़ी सी सिमटी हुयी
और
थोड़ा सा शरमाई हो
चाँद कहूं या सूरज तुमको
फूल कहूं या तारे
सारी उपमा फीकी पड़ गयी
फीके पड़े नज़ारे
क्या कहूं तुम कैसी हो
मेरे सपनों जैसी हो
चांदनी में नहाई हो
दुल्हन सी शरमाई हो
जैसे खुद से मिलकर
खुद से ही लजाई हो
पलकें ऐसे झुकी हुयी हैं
पंखुड़ियों सी ढकी हुयी हैं
तेरे अधर ऐसे लरजते हैं
जैसे मुझसे मिलने को तरसते हैं
तुम अपनी खुशबू से महकती हो
माथे की बिंदिया से दमकती हो
चाँद तुमसे घबराता है
तेरे क़दमों की आहट सुन
जाने कहाँ छुप जाता है
तेरे कंगन की खन खन से
सरगम जल जल जाती है
तेरे पायल की रुन झुन से
रागिनी भी शरमाती है
आकाश की अपसराएँ भी
तुझसे मिलने आती हैं
जाने अब क्या नाम दूं तुझको
कैसी ये उलझन है मुझको
परी कहूं या तारिका
नहीं नहीं
तू है
मेरी अभिसारिका
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