अब ना कुछ कहना शेष है,
ना कुछ सुनना बाकी।
जो कहना था —
आँखों ने कहा,
जो सहना था —
हृदय ने सहा।
अब हम दो नहीं,
ना ही एक —
बस एक साथ बहती
दो नदियाँ हैं,
जो अपना किनारा
पढ़ चुकी हैं।
तुम मेरी साँसों में
बिना नाम की हो,
और मैं
तुम्हारे मौन का
अर्थ हो गया हूँ।
हम साथ चलते हैं,
बिना किसी दिशा के —
जैसे पगडंडी
खुद हमारी राह बनाती हो
ना कोई वादा,
ना कोई कसम,
फिर भी
हर क्षण
प्रतिज्ञा सा पवित्र है।
अब प्रेम
कोई शब्द नहीं रहा,
ना स्पर्श, ना दृष्टि —
अब प्रेम
एक आदत है —
तेरे होने का
सुबह जब साथ उठते हैं,
तो चाय में
एक चुप मुस्कान घुलती है।
शाम को
तुम्हारा आँचल
खिड़की से हिलता है,
और हवा
मुझसे कहती है —
"वो है।"
अब कोई चिठ्ठियाँ नहीं लिखता,
कोई नाम नहीं पुकारता,
फिर भी हर दिन
तेरे नाम पर
जीता हूँ।
अब प्रेम
कोई तर्क नहीं,
ना ही उत्तेजना —
अब प्रेम
एक प्रार्थना है
जो खुद से होती है,
हर रोज़।
जो तुम्हें
पूछे बिना चाहता है,
जो किसी मंज़िल के बिना
चलता है,
जो कुछ कहे बिना
हर पल कहता है:
"मैं हूँ।
तुम हो।
बस इतना ही
काफ़ी है।"
यह प्रेम
अब आवाज़ नहीं —
एक मौन साथ है,
जो जीवन भर
बोलता रहेगा
बिना कुछ कहे
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