कभी-कभी लगता है…
मैं अब भी वहीं हूँ —
जहाँ तुमने मुझे छोड़ा था।
वक़्त बीत गया,
मौसम बदले, चेहरे बदले, रास्ते बदले —
पर मेरे भीतर कुछ नहीं बदला।
मैं अब भी वही सवाल लिए बैठा हूँ —
कि अगर इतना प्यार था, तो बिछड़ना क्यों ज़रूरी था?
मैंने सबको बताया कि मैं ठीक हूँ।
सबने मान भी लिया।
पर दिल…?
उसे तो बस तुम्हारा नाम आता है हर धड़कन में।
रातें सबसे ज़्यादा बेवफ़ा होती हैं।
वो तुम्हारी यादों को चुपचाप कमरे में ले आती हैं।
और मैं, एक खोया हुआ साया बन जाता हूँ —
जो सिर्फ़ तुम्हारे होने की ख़ामोशी सुनता है।
कभी लगा कि चलूँ… कहीं दूर…
पर दिल ने कहा —
"तू कहाँ जाएगा?
तू तो अब उसकी यादों में बस गया है।"
और मैं चुप रह गया।
क्योंकि शायद… यही मेरी सज़ा है।
या शायद, यही मेरा इश्क़ है।
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